
परवेज़ आलम की रिपोर्ट ……
आज की खबर झारखंड की राजनीति के गलियारों से है, जहां की सांस ली। झारखंड हाईकोर्ट ने ईडी के समन को लेकर उन्हें व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में उपस्थित होने के आदेश से अंतरिम राहत दी है।
अब कहानी की परतें खोलते हैं।
रांची की एमपी-एमएलए कोर्ट ने 25 नवंबर को हेमंत सोरेन को 4 दिसंबर को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया था। मामला ईडी की ओर से दाखिल शिकायतवाद का है, जिसमें आरोप लगाया गया कि हेमंत सोरेन ने जमीन घोटाले में पूछताछ के लिए भेजे गए 10 समनों में से केवल दो पर उपस्थिति दर्ज कराई। बाकी बार वह अनुपस्थित रहे।
इस आदेश के खिलाफ हेमंत सोरेन ने झारखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। और वहां, जस्टिस अनिल कुमार चौधरी की बेंच ने उन्हें बड़ी राहत देते हुए व्यक्तिगत उपस्थिति के आदेश पर रोक लगा दी। कोर्ट ने ईडी से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई 16 दिसंबर को तय की है।
अब जरा रुकिए। यह केवल एक कानूनी मसला नहीं है। यह एक राजनीतिक कथा भी है।
ईडी के समन, सीजेएम कोर्ट का आदेश, फिर मामला एमपी-एमएलए कोर्ट में पहुंचना और अब हाईकोर्ट में राहत मिलना—यह सब क्या संकेत देता है? राजनीति और कानून के इस ताने-बाने में, असल मुद्दा जनता के सरोकारों से कहीं छूट तो नहीं गया?
हेमंत सोरेन के खिलाफ 19 फरवरी 2024 को शिकायत दर्ज की गई थी। ईडी का आरोप है कि जमीन घोटाले में उनका नाम सामने आया है। समन पर अनुपस्थिति को पीएमएलए की धारा 63 और आईपीसी की धारा 174 के तहत गैरकानूनी बताया गया। लेकिन, यह भी देखना होगा कि क्या यह मामला केवल कानून का पालन न करने का है, या इसके पीछे कोई और कहानी छुपी है?
राजनीति और कानून के इस खेल में हमेशा सवाल उठते हैं।
क्या हेमंत सोरेन को दी गई यह राहत उनकी स्थायी सुरक्षा की गारंटी है, या सिर्फ कुछ समय के लिए मिली राजनीतिक सांस? ईडी का अगला कदम क्या होगा? और 16 दिसंबर को अदालत का रुख क्या होगा?
जब एक मुख्यमंत्री को अदालत में हाजिर होने से राहत मिलती है, तो यह सिर्फ एक कानूनी खबर नहीं होती। यह लोकतंत्र की बारीकियों को समझने का मौका भी होता है।