
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट …..
गुजरात से लेकर झारखंड तक दिल दहला देने वाली कहानी:
गुजरात के भरूच में 10 साल की मासूम बच्ची के साथ जो हुआ, वह सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक विफलता का प्रमाण है। झारखंड से मजदूरी के लिए गए परिवार की इस बच्ची ने वडोदरा के अस्पताल में सात दिनों तक संघर्ष किया। लेकिन जब सिस्टम ने जवाब दे दिया, तो मासूम की सांसे भी थम गईं। डॉक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित किया, तो यह मौत केवल उसके शरीर की नहीं थी, बल्कि इंसानियत और न्याय की भी मौत थी।
झारखंड सरकार की कोशिशें:
रांची में झारखंड की ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने इस घटना पर दुःख जताया। उन्होंने कहा, “यह समय मुश्किल है, लेकिन राज्य सरकार बच्ची के परिवार के साथ खड़ी है। हम हरसंभव प्रयास कर रहे हैं कि पीड़ित को न्याय मिले।”
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बच्ची के इलाज के लिए हर संभव मदद की बात कही थी, लेकिन बच्ची को बचाया नहीं जा सका।
कैसे हुआ यह अपराध?
भरूच के झगड़िया इलाके में 36 साल के एक मजदूर ने इस मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाया। बच्ची के निजी अंगों को लोहे की रॉड से क्षतिग्रस्त कर दिया गया। माता-पिता जब काम पर गए थे, तब यह घिनौना कृत्य हुआ। बच्ची को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसने दम तोड़ दिया।
न्याय का वादा, लेकिन देरी क्यों?
दीपिका पांडेय सिंह ने फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की मांग की है। उनका कहना है कि राज्य सरकार दोषियों को सख्त सजा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या यह प्रक्रिया तेज होगी या फिर यह मामला भी लंबे समय तक ठंडे बस्ते में रहेगा?
गुजरात में गरमाई राजनीति:
इस घटना ने राजनीति को भी हवा दे दी है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गुजरात सरकार पर निशाना साधा है। सवाल उठ रहे हैं कि बंगाल की घटनाओं पर आवाज उठाने वाली भाजपा, गुजरात में हुई इस बर्बरता पर चुप क्यों है? कांग्रेस नेता अहमद पटेल की बेटी मुमताज पटेल ने इसे मानवीय मुद्दा बताते हुए कहा है कि गुजरात कांग्रेस के प्रतिनिधि और झारखंड सरकार की ओर से पीड़ित परिवार से मिलकर उनका दुख साझा करना चाहते हैं, आर्थिक सहायता देना चाहते हैं और बच्ची का सम्मानजनक अंतिम संस्कार सुनिश्चित करना चाहते हैं। मैं गुजरात सरकार और प्रशासन से अपील करती हूं कि वे हमारे प्रतिनिधियों को पीड़ित परिवार से मिलने दें। तो वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रमुख इसुदान गढ़वी ने सीएम से पूछा है कि क्या वे गुजरात की निर्भया के लिए धरने पर बैठेंगे। कोलकाता रेप में लेडी डॉक्टर को इंसाफ दिलाने के लिए भूपेंद्र पटेल अहमदाबाद में धरने पर बैठे थे।
क्या सिस्टम से भरोसा टूट रहा है?
मामला सिर्फ इस बच्ची का नहीं है। यह सवाल उठता है कि मजदूर परिवारों की बेटियां, जो अपने सपनों के साथ बड़े शहरों की चौखट तक पहुंचती हैं, क्या उनके लिए कोई सुरक्षा नहीं है?
पुलिस की कार्यवाही और समाज की जिम्मेदारी:
आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन क्या यह गिरफ्तारी इस बच्ची के लिए इंसाफ का रास्ता साफ करेगी? या फिर यह घटना भी आंकड़ों का हिस्सा बनकर रह जाएगी?
मेरा सवाल:
क्या आज हम अपनी बेटियों से यह कह सकते हैं कि वे सुरक्षित हैं? और अगर नहीं, तो क्यों?
क्योंकि जब तक हमारी बेटियां डर के साये में जीती रहेंगी, तब तक विकास और प्रगति के दावे खोखले ही रहेंगे।