
परवेज़ आलम.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत हो चुकी है। 2025 में हुए पार्टी के 13वें महाधिवेशन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सर्वसम्मति से झामुमो का केंद्रीय अध्यक्ष चुना गया। यह निर्णय पार्टी के लिए एक पीढ़ीगत बदलाव का संकेत है, जहां 38 वर्षों तक अध्यक्ष रहे दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने अपने पुत्र को पार्टी की बागडोर सौंपी।
महाधिवेशन का आयोजन रांची के खेलगांव में हुआ, जहां हजारों की संख्या में कार्यकर्ता और प्रतिनिधि मौजूद थे। पार्टी के वरिष्ठ नेता नलिन सोरेन ने शिबू सोरेन को संस्थापक संरक्षक के रूप में प्रस्तावित किया, जिसका समर्थन मथुरा महतो ने किया। इसके बाद शिबू सोरेन ने मंच से हेमंत सोरेन को पार्टी का केंद्रीय अध्यक्ष घोषित किया। घोषणा के तुरंत बाद, मंच पर मौजूद नेताओं और कार्यकर्ताओं ने तालियों और नारों से नए अध्यक्ष का जोरदार स्वागत किया।
पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की घोषणा.
महाधिवेशन में झामुमो की नई केंद्रीय समिति की भी घोषणा की गई, जिसमें कुल 284 सदस्य शामिल किए गए। जिलावार रूप से साहिबगंज, दुमका और रांची सहित विभिन्न जिलों से सदस्यों को चुना गया। प्रमुख नामों में खुद हेमंत सोरेन, पंकज मिश्रा, शिबू सोरेन, नलिन सोरेन, बसंत सोरेन, मधु मंसूरी और महुआ माजी जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हैं।
हेमंत सोरेन की राजनीतिक यात्रा.
हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर संघर्ष, धैर्य और रणनीतिक दूरदर्शिता से भरा रहा है। 2003 में छात्र मोर्चा से शुरुआत करने वाले हेमंत पहली बार 2009 में राज्यसभा के लिए चुने गए। उसी वर्ष दुमका से विधानसभा चुनाव जीतकर राज्य की राजनीति में मजबूत उपस्थिति दर्ज की। 2010 में वे उपमुख्यमंत्री बने और 2013 में पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। 2019 और 2024 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने पार्टी को शानदार सफलता दिलाई, जिसके कारण वे झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री बने।
हालांकि उनका सफर विवादों से भी अछूता नहीं रहा। 2024 में उन्हें ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया, जिससे उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। लेकिन जमानत पर बाहर आने के बाद वे फिर से चुनावी मैदान में उतरे और झामुमो के नेतृत्व में INDIA गठबंधन को रिकॉर्ड 56 सीटें दिलाकर सत्ता में वापसी की।
कल्पना सोरेन की भूमिका.
इस कठिन दौर में हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब हेमंत जेल में थे, तब कल्पना ने पार्टी के लिए स्टार प्रचारक के रूप में प्रचार किया। उन्होंने न केवल कार्यकर्ताओं को संगठित किया, बल्कि महिला मतदाताओं में भी झामुमो के लिए समर्थन जुटाया। उनके समर्पण और संगठन क्षमता ने हेमंत को जेल से बाहर आने के बाद एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित करने में मदद की।
झामुमो का भविष्य: राष्ट्रीय विस्तार की योजना.
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद हेमंत सोरेन ने पार्टी के विस्तार की योजनाओं की घोषणा की। उनका लक्ष्य झारखंड के बाहर, विशेषकर ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में झामुमो को मजबूत करना है। उनका मानना है कि झामुमो सिर्फ एक पार्टी नहीं बल्कि एक आंदोलन है, जिसे राष्ट्रीय मंच पर ले जाने की जिम्मेदारी अब उनकी है।
नेतृत्व में पीढ़ीगत बदलाव.
शिबू सोरेन ने 1972 में झामुमो की स्थापना की थी। उनके नेतृत्व में पार्टी ने आदिवासी अधिकारों, जल-जंगल-जमीन की रक्षा और झारखंड राज्य की मांग को लेकर ऐतिहासिक आंदोलन चलाया। अब यह विरासत हेमंत सोरेन के हाथों में है, जो इसे आधुनिक दौर की राजनीति में नई पहचान देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
हेमंत सोरेन का नेतृत्व केवल राजनीतिक ही नहीं बल्कि वैचारिक रूप से भी पार्टी को नई दिशा देगा। उन्होंने अपने पहले दो कार्यकालों में जनहितकारी योजनाएं लागू की, जैसे “अबुआ आवास योजना”, महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता और आरक्षण नीति में बदलाव। इन पहलों ने उन्हें जनता के बीच एक जननेता के रूप में स्थापित किया।
हेमंत सोरेन का केंद्रीय अध्यक्ष बनना न केवल झामुमो के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, बल्कि झारखंड की राजनीति में स्थिरता और निरंतरता का संकेत भी है। शिबू सोरेन की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, हेमंत एक ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं जो परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन स्थापित कर सकते हैं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी—पार्टी की मूल विचारधारा को बनाए रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर झामुमो को मजबूती प्रदान करना।