
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रिपोर्टिंग ………
I.N.D.I.A यानी विपक्षी दलों का सबसे बड़ा गठबंधन। इसका नेतृत्व कौन करेगा? ये सवाल अब सियासत के गलियारों में गूंज रहा है। इस बीच झारखंड से झामुमो का बयान आया है। महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने जो कहा, उसका मतलब साफ है—नेतृत्व ऐसा हो जो परिपक्व हो, अनुभव से भरा हो। लेकिन इस बयान के मायने क्या हैं?
झामुमो का संदेश: नाम नहीं, मगर इशारा साफ।
झामुमो ने किसी का नाम नहीं लिया। पर क्या इस बयान का मतलब ममता बनर्जी के समर्थन में है, या कांग्रेस पर सवाल ? झारखंड में सत्ता चला रही। झामुमो का वजन अब राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ रहा है। हेमंत सोरेन की पार्टी न सिर्फ गठबंधन का अहम हिस्सा है, बल्कि खुद सोरेन I.N.D.I.A की कोर कमेटी में भी हैं।
सार्वजनिक बहस पर रोक की वकालत
भट्टाचार्य ने कहा कि नेतृत्व जैसे मुद्दे पर सार्वजनिक मंच से चर्चा नहीं होनी चाहिए। यह इशारा किस तरफ है? हाल के दिनों में लालू यादव और शरद पवार ने ममता बनर्जी के नेतृत्व की वकालत की है। वहीं कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल भी उठे हैं।
ममता बनर्जी: विपक्ष की धुरी या सवालों का केंद्र?
ममता बनर्जी को लेकर विपक्ष में चर्चा गर्म है। बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता, विपक्ष की रणनीति में अहम मानी जाती हैं। पर क्या कांग्रेस इस पर सहमत होगी? राहुल गांधी की हालिया सक्रियता और कांग्रेस का इरादा क्या ममता के पक्ष में जाएगा?
हेमंत सोरेन का दांव: गठबंधन की सीख।
हेमंत सोरेन ने झारखंड में गठबंधन को सफलतापूर्वक संभाला। कांग्रेस, राजद और वाम दलों के बीच तालमेल बैठाया। सीट शेयरिंग से लेकर मंत्री पद तक—हर जगह गठबंधन का धर्म निभाया। झारखंड में यह मॉडल I.N.D.I.A के लिए सबक हो सकता है।
क्या बोले सियासी संकेत?
झामुमो का बयान, झारखंड की सीमाओं से आगे जाकर संदेश दे रहा है। विपक्ष को बेहतर समन्वय और तालमेल का रास्ता दिखाने की कोशिश। लेकिन क्या इस ‘परिपक्व और अनुभवी’ नेता की परिभाषा पर सभी दल सहमत होंगे?
कहानी अभी बाकी है…
तो सवाल फिर वही है—I.N.D.I.A का नेतृत्व किसके हाथ में होगा? झामुमो का बयान, लालू-ममता की वकालत, कांग्रेस की दुविधा—ये सब इस राजनीति की गहराई को और बढ़ाते हैं।
नेतृत्व पर निर्णय भले देर से हो, लेकिन एक बात साफ है—यह चुनावी राजनीति का सबसे बड़ा दांव है। और जब दांव बड़ा हो, तो हर कदम संभलकर उठाना होता है।