RANCHI: झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण में हुए मतदान ने एक अहम संदेश दिया है—जनता ने विभाजन और नफरत की राजनीति को ठुकराकर जन मुद्दों को प्राथमिकता दी है। यह दावा लोकतंत्र बचाओ अभियान (अबुआ झारखंड, अबुआ राज) ने दुमका में आयोजित एक प्रेस वार्ता में किया।
अभियान के सदस्य, जो आदिवासी और मूलवासी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं, का कहना है कि भाजपा का सांप्रदायिक एजेंडा अब बेनकाब हो चुका है। भाजपा की ओर से धार्मिक ध्रुवीकरण के प्रयासों को जनता ने नकार दिया है। बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उछालकर भाजपा ने क्षेत्र में तनाव पैदा करने की कोशिश की, लेकिन अभियान के अनुसार, इसके कोई तथ्यात्मक प्रमाण नहीं मिले। केंद्र सरकार ने भी संसद और उच्च न्यायालय में माना है कि उनके पास घुसपैठियों का कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है।
लोकतंत्र बचाओ अभियान का आरोप है कि भाजपा ने आदिवासियों और मूलवासियों से जुड़े सवालों पर चुप्पी साध रखी है। चाहे वह सीएनटी-एसपीटी कानून हो, सरना कोड, खतियान आधारित स्थानीय नीति, या जल-जंगल-जमीन के अधिकार—भाजपा ने इन पर कोई ठोस रुख नहीं लिया।
इसके विपरीत, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू करने और लैंड बैंक को समाप्त करने का वादा किया है। सरना कोड को लेकर भी भाजपा ने अपने घोषणापत्र में कोई बात नहीं की, जबकि झामुमो और INDIA गठबंधन इसे लागू करने की बात कर रहे हैं।
अभियान ने भाजपा और झामुमो के घोषणापत्रों की तुलना करते हुए बताया कि सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों पर बड़ा फर्क दिखता है। मोदी सरकार ने आंगनवाड़ी और मध्याह्न भोजन जैसी योजनाओं के बजट में कटौती की, जबकि झामुमो ने बच्चों को अंडा या फल प्रतिदिन देने का वादा किया है।
झारखंड में पेंशन के मामले में भी झामुमो ने बढ़त बनाई है। जहां केंद्र सरकार सिर्फ ₹200 पेंशन देती है, हेमंत सोरेन सरकार इसे ₹800 तक बढ़ा चुकी है और आगे ₹2500 करने की योजना है। झामुमो ने 30 लाख लोगों को पेंशन योजना का लाभ दिया, जबकि भाजपा इस मामले में चुप है।
अभियान ने अडानी पावर प्रोजेक्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने आदिवासियों की जमीन जबरन अधिग्रहित की और झारखंड को घाटे में रखकर बांग्लादेश को बिजली दी। संथाल परगना में बिजली के अभाव को लेकर जनता में गहरी नाराजगी है।
अभियान ने भाजपा पर सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के भाषणों ने माहौल खराब करने की कोशिश की। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के संथाल परगना को अलग करने के सुझाव को आदिवासी विरोधी मानसिकता का उदाहरण बताया गया।
अभियान के प्रतिनिधियों का विश्वास है कि झारखंड की जनता ने पहले चरण में नफरत की राजनीति को खारिज कर दिया है और आगे भी जल-जंगल-जमीन और अस्तित्व से जुड़े सवालों को प्राथमिकता देगी। लोकतंत्र और अधिकारों की रक्षा के लिए जनता का रुझान स्पष्ट है—यह चुनाव सिर्फ वोट नहीं, बल्कि झारखंड के भविष्य की दिशा तय करेगा।