
RANCHI: झारखंड के पलामू जिले के सुदना इलाके में स्थित एक बालिका गृह में यौन शोषण का गंभीर मामला सामने आया है। दो बच्चियों ने बालिका गृह के संचालक और एक महिला कर्मी पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब शुक्रवार को कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता बालिका गृह का दौरा करने पहुंचे।
आपबीती सुनाते हुए रो पड़ीं बच्चियां
28 बच्चियों वाले इस बालिका गृह में रह रहीं दो लड़कियों ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के सामने अपनी आपबीती सुनाई। उन्होंने बताया कि संचालक ने उनके साथ घिनौनी हरकत की और महिला कर्मी ने इस गुनाह में उसका साथ दिया। एक बच्ची ने कहा कि यह घटना दीपावली और छठ के दौरान हुई, जब उन्हें संचालक के घर ले जाया गया। दूसरी बच्ची ने भी ऐसे ही शोषण के प्रयास का खुलासा किया।
पुलिस ने की त्वरित कार्रवाई
इस मामले में पलामू की एसपी रीष्मा रमेशन ने जानकारी देते हुए कहा कि बच्चियों के बयान और मेडिकल जांच के आधार पर आरोपियों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट समेत गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। फिलहाल, दोनों आरोपियों—बालिका गृह के संचालक और महिला कर्मी—को गिरफ्तार कर लिया गया है।
सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट की गईं बच्चियां
घटना के बाद प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए सभी 28 बच्चियों को बालिका गृह से निकालकर सखी वन स्टॉप सेंटर में स्थानांतरित कर दिया है। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि बच्चियों को एक सुरक्षित माहौल में रखा जाए।
मुजफ्फरपुर कांड की यादें ताजा
यह मामला बिहार के कुख्यात मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की याद दिलाता है, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता संध्या सिन्हा ने इस घटना को बाल सुरक्षा व्यवस्था की विफलता करार दिया। उन्होंने कहा, “यह घटना बताती है कि बालिका गृहों की निगरानी और जांच की प्रक्रिया में अब भी गंभीर खामियां हैं।”
प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती
इस घटना ने न केवल प्रशासन की सतर्कता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि बाल सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी को भी उजागर कर दिया है। यह जरूरी है कि ऐसे संवेदनशील संस्थानों की नियमित जांच की जाए और दोषियों को कड़ी सजा मिले, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
क्या बाल सुरक्षा अब भी प्राथमिकता नहीं?
पलामू का यह मामला एक बार फिर हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर बच्चों की सुरक्षा के नाम पर चलने वाले इन संस्थानों की जवाबदेही कब तय होगी। दोषियों पर कार्रवाई तो हो रही है, लेकिन यह तब क्यों नहीं रोका गया, जब ये बच्चियां पहली बार पीड़ित हुईं?