
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट…..
झारखंड विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक, कोयला रॉयल्टी का 1.36 लाख करोड़ रुपये का मुद्दा गर्म है। हेमंत सोरेन कहते हैं, “झारखंड को उसका हक चाहिए,” तो प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हैं। लेकिन जवाब क्या आता है? केंद्र कहता है- “कोई बकाया नहीं।”
लोकसभा में सवाल उठा… पप्पू यादव ने पूछा- “झारखंड का हक कब मिलेगा?” जवाब आया- झारखंड को पिछले 3 साल में 7790 करोड़ रुपये मिल चुके हैं। कोयला राजस्व में “झारखंड का कोई हिस्सा बाकी नहीं”- यह बयान देता है केंद्रीय वित्त मंत्रालय।
लेकिन सवाल वहीं का वहीं। झारखंड सरकार कहती है कि “1.48 लाख करोड़ का बकाया है।” इसमें 32,000 करोड़ रुपये एमएमडीआर के तहत, 29,000 करोड़ रॉयल्टी के नाम पर, और 1.01 लाख करोड़ भूमि अधिग्रहण के एवज में।
“किसका सच, किसका झूठ?” यह सवाल अब झारखंड की जनता के मन में गूंज रहा है। हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर कहा-
“झारखंड के बीजेपी सांसद क्यों चुप हैं? आवाज उठाइए। झारखंड का यह पैसा राज्य के विकास के लिए जरूरी है।”
लेकिन दूसरी तरफ, केंद्र का जवाब साफ है। बकाया नहीं, भेदभाव नहीं। सवाल उठता है कि “तो फिर झारखंड सरकार ये आंकड़े कहां से ला रही है?”
हेमंत सोरेन की सरकार कहती है, “कानूनी रास्ता अपनाया जाएगा।” केंद्र कहता है, “जो मिला, वही हक है।”
अब सवाल यह है कि “झारखंड की जनता किस पर भरोसा करे?”
क्या यह सिर्फ एक आंकड़ों का खेल है, या फिर राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा? झारखंड की धरती, खनिज, और कोयले के बीच… “विकास की गूंज सुनाई देगी, या सवाल ही सवाल बाकी रहेंगे?”