
RANCHI: छोटू खरवार की मौत झारखंड के लिए एक नए युग की शुरुआत है। यह सिर्फ एक नक्सली कमांडर का खात्मा नहीं, बल्कि वर्चस्व की राजनीति में छिड़ी अंदरूनी जंग का खुलासा है। झारखंड पुलिस और सुरक्षा बलों ने जहां इसे बड़ी जीत माना है, वहीं नक्सली संगठनों के लिए यह चेतावनी है कि आतंक और अपराध का अंत तय है। लातेहार की धरती एक बार फिर खून से लाल हो गई, लेकिन इस बार कहानी उलट है। 15 लाख के इनामी नक्सली कमांडर छोटू खरवार, जो कभी दहशत का दूसरा नाम था, मंगलवार रात वर्चस्व की जंग में मारा गया। पुलिस ने उसके शव को बरामद कर लिया है। छोटू खरवार, जिसे नक्सली संगठनों में “सुजीत जी” के नाम से भी जाना जाता था, झारखंड के लातेहार, पलामू, गढ़वा, और गुमला जैसे जिलों में 100 से ज्यादा संगीन मामलों में वांछित था।
कौन था छोटू खरवार?
छोटू, भाकपा (माओवादी) संगठन की रीजनल कमेटी का सदस्य था और आतंक, रंगदारी और हिंसा का एक ऐसा अध्याय था, जिसे झारखंड कभी भूल नहीं सकता। पुलिस और एनआईए ने उसके सिर पर इनाम रखा था—15 लाख झारखंड पुलिस की ओर से और 3 लाख एनआईए की ओर से।
2018 में एनआईए ने छोटू के खिलाफ मामला टेकओवर किया था। उसकी पत्नी ललिता देवी तक को पुलिस ने 2019 में गिरफ्तार किया था, जब छोटू के पैसे को निवेश कराने के दस्तावेज मिले। छोटू ने सहारा इंडिया के जरिए लाखों का लेनदेन किया था, जिससे पुलिस को उसके आर्थिक नेटवर्क का अंदाजा हुआ।
कैसे मारा गया छोटू?
मंगलवार रात, लातेहार के नावाडीह इलाके में नक्सलियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में छोटू मारा गया। झारखंड पुलिस ने उसके शव को बरामद कर लिया है। ऑपरेशन ऑक्टोपस के दौरान बूढ़ापहाड़ से भाग निकले नक्सलियों में छोटू भी शामिल था। इसके बाद वह कोयल-शंख जोन में संगठन को मजबूत करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन ये कोशिशें अब खत्म हो गई हैं।
आतंक से तस्करी तक: छोटू की कहानी
छोटू ने हत्या, विस्फोट, आगजनी, पुलिस पर हमले जैसे अनगिनत अपराध किए। उसने हाल ही में लातेहार के छिपादोहर इलाके में एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की हत्या की थी। 2016 में, पुलिस ने उसकी संपत्तियों और लेवी वसूली के सबूत जुटाए थे।
2016: लातेहार में सहारा इंडिया के मैनेजर से 3 लाख की बरामदगी।
2018: एनआईए ने छोटू के खिलाफ केस संभाला।
2019: पत्नी की गिरफ्तारी, आर्थिक नेटवर्क का खुलासा।
2023: ऑपरेशन ऑक्टोपस के बाद से भूमिगत।
2024: वर्चस्व की लड़ाई में मौत।
झारखंड के जंगलों में अब नक्सली ताकत की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। छोटू का खात्मा यही संदेश देता है—बंदूक का अंत हमेशा खून से लिखा जाता है।