
परवेज़ आलम की कलम से……
झारखंड विधानसभा की कुर्सी नंबर 82 अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है। एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए आरक्षित यह सीट, जो वर्षों तक अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की गवाह रही, अब खाली रहेगी। यह कुर्सी झारखंड के गठन के बाद से ग्लेन जोसेफ गालस्टेन जैसे प्रतिनिधियों का आसन बनी रही, लेकिन संविधान के 104वें संशोधन के बाद यह परंपरा खत्म हो गई।
एक युग का अंत: ग्लेन गालस्टेन की विरासत
ग्लेन जोसेफ गालस्टेन भारतीय संसदीय प्रणाली के अंतिम एंग्लो-इंडियन विधायक साबित हुए। 2020 में केंद्र सरकार द्वारा इस व्यवस्था को खत्म करने से पहले, उन्होंने 24 जनवरी 2020 को झारखंड विधानसभा में शपथ ली। यह फैसला हड़बड़ी में हुआ, क्योंकि 25 जनवरी से संविधान संशोधन लागू होने वाला था।
गालस्टेन मानते हैं कि उनके समुदाय को लेकर देश में गलत धारणाएं फैलाई गईं। वे कहते हैं, “लोगों ने हमें भाजपा विरोधी बताया, जबकि एंग्लो-इंडियन लोग सभी दलों में सक्रिय हैं। कुछ लोगों ने हमारी आवाज दबाने के लिए यह व्यवस्था खत्म कराई।”
एक ऐतिहासिक व्यवस्था की विदाई
1952 से 2020 तक, एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में सीटें आरक्षित रहीं। झारखंड में यह सीट राज्य के गठन के बाद से बनी रही, लेकिन 2020 के संशोधन ने इसे खत्म कर दिया।
गालस्टेन के मुताबिक, भारत सरकार ने जनगणना के आधार पर एंग्लो-इंडियन समुदाय की संख्या शून्य दिखाई, जबकि वे दावा करते हैं कि इस समुदाय की संख्या देशभर में तीन लाख के करीब है।
क्या यह अंत है या नए अध्याय की शुरुआत?
गालस्टेन का मानना है कि केंद्र सरकार चाहे तो इस समुदाय के लिए फिर से संसद और विधानसभाओं के दरवाजे खोल सकती है। वे कहते हैं, “हमें विश्वास में लेकर सही आंकड़े प्रस्तुत किए जाएं, तो स्थिति बदल सकती है।”
गालस्टेन ने झारखंड में 15 वर्षों तक सेवा दी और अब एक नया सपना देख रहे हैं – जरूरतमंद बच्चों के लिए स्कूल खोलने का। वे 2026 में परिसीमन की संभावना को लेकर भी आशान्वित हैं।
कुर्सी नंबर 82: अब इतिहास का हिस्सा
झारखंड विधानसभा में यह कुर्सी अब खाली रहेगी, लेकिन यह केवल एक सीट नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय की उस आवाज का प्रतीक थी, जिसने दशकों तक भारतीय लोकतंत्र में अपनी पहचान बनाए रखी।