झारखंड मुक्ति मोर्चा में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना !

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-परवेज़ आलम 

जेएमएम के 13वें केंद्रीय महाधिवेशन मे झारखंड मुक्ति मोर्चा के  नेतृत्व परिवर्तन के कयास लगाए जा रहे हैं ।  विधायक कल्पना मूर्मु सोरेन व पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन की पुत्र वधू  को पार्टी में केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष  या महासचिव जैसे बड़े पद दिए जा सकते हैं । यह कदम पार्टी के संगठन को और धारदार बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इसके अलावा, केंद्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी होगा, और पार्टी सूत्रों के अनुसार, शिबू सोरेन को एक बार फिर अध्यक्ष चुने जाने की संभावना है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड राज्य में एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी है, और अपने 13वें केंद्रीय महाधिवेशन की तैयारी में जुटा है। यह अधिवेसन 14-15 अप्रैल 2025 को रांची में आयोजित होगा, जो पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। झमुमो, जिसकी स्थापना 1972 में हुई थी, ने झारखंड को बिहार से अलग राज्य बनाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया और 2000 में इस लक्ष्य को प्राप्त किया। पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष शिबू सोरेन हैं, और कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन, जो वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री भी हैं, हैं।

आयोजन की विस्तृत जानकारी

महाधिवेशन का आयोजन रांची के खेलगांव स्थित इन्डोर स्टेडियम में होगा, और इसका प्रारम्भ 14 अप्रैल को, जो डॉ. भीमराव अम्बेकर के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है, पर होगा। यह दो-दिवसीय अधिवेसन 15 अप्रैल को समाप्त होगा।

प्रतिनिधियों का विवरण

महाधिवेशन में करीब 3900 प्रतिभागी भाग लेंगे, जो झारखंड के अलावा बिहार, प. बंगाल, ओडिशा, असम और तमिलनाडु जैसे अन्य प्रदेशों से आएंगे। इन प्रदेशों में झममो की सांगठनिक इकाइयां हैं, जो इस विस्तार को दर्शाती हैं। इसके अलावा, अंडमान-निकोबार से भी अतिथि के रूप में प्रतिभागी शामिल होंगे, जो इस महाधिवेशन को और अधिक व्यापक बनाता है।

रजिस्ट्रेशन और तैयारी

प्रतिभागियों का रजिस्ट्रेशन अप्रैल के पहले सप्ताह में शुरू होगा, ताकि व्यवस्था बनाने में आसानी हो। सदस्यता अभियान 31 मार्च 2025 तक चलेगा, और इसके बाद संगठन की इकाइयों का गठन होगा। यह प्रक्रिया पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर पर पूरी करने में करीब 30-35 दिन लगेंगे। अधिवेसन से पहले, 16 जनवरी 2025 से ही राज्य में पंचायत से लेकर जिला स्तर की कमेटियां भंग की जा चुकी हैं।

चर्चा के मुख्य मुद्दे

महाधिवेशन में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी, जिसमें पार्टी की भविष्य की रणनीतियां शामिल हैं। विशेष रूप से, बिहार और प. बंगाल के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाई जाएगी, क्योंकि पार्टी इन दोनों राज्यों में अपनी उपस्थिति मजबूत करना चाहती है। इसके अलावा, देश की आर्थिक स्थिति, जो पार्टी के अनुसार खस्ताहाल है, और केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना भी की जाएगी। पार्टी अगले तीन वर्षों के लिए अपनी कार्य-योजना भी प्रस्तुत करेगी।

मणिपुर और असम के आदिवासियों के हित से जुड़े मुद्दे भी चर्चा का हिस्सा होंगे, जिसमें हेमंत सोरेन की नेतृत्व क्षमता को रेखांकित किया जाएगा। हेमंत सोरेन को देश के आदिवासी समाज के लिए एक उम्मीद की किरण माना जाता है, खासकर उनके तानाशाही के खिलाफ संघर्ष के लिए।

संगठनात्मक परिवर्तन और लक्ष्य

महाधिवेशन में केंद्रीय समिति भंग की जाएगी, और संचालन मंडली व अध्यक्ष मंडली का गठन होगा। सदस्यता अभियान का लक्ष्य 60 लाख सदस्य बनाना है, जो पिछले 50 लाख के लक्ष्य से अधिक है। यह अभियान अब अपने अंतिम चरण में है, और इसके बाद संगठन पंचायत, प्रखंड और जिला कमेटियों के गठन में जुट जाएगा।

ऐतिहासिक संदर्भ

यह अधिवेसन 2021 के 12वें केंद्रीय महाधिवेसन से अलग है, जो कोविड-19 महामारी के कारण केवल एक दिन के लिए और 500 से कम प्रतिभागियों के साथ आयोजित हुआ था। इस बार, यह तीन दिनों तक चलेगा, और सात से आठ राज्यों के प्रतिभागी शामिल होंगे, जो इसकी व्यापकता को दर्शाता है।

तालिका: अधिवेशन के मुख्य बिंदु

राजनीतिक दल अधिवेशन मे पार्टी की रणनीति और भविष्य की दिशा तय करते है

राजनीतिक दलों के केंद्रीय अधिवेशन किसी भी संगठन के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होते हैं, जहां नीतिगत फैसलों से लेकर नेतृत्व के चुनाव तक, विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की जाती है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के हालिया अधिवेशन में भी यही देखा गया, जहां पार्टी ने केंद्रीय नीतियों का विरोध करने से लेकर आगामी चुनावों की रणनीति तक कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए।

नीतिगत चर्चा और विरोध के प्रस्ताव

जेएमएम ने अपने अधिवेशन से पहले कई महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लिए, जिनमें जनजातीय अधिकारों की सुरक्षा और राज्य के विकास से जुड़े मुद्दों पर विशेष जोर दिया गया। पार्टी ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), समान नागरिक संहिता (UCC) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को खारिज करने का प्रस्ताव पारित किया, जिसकी संपुष्टि इसी अधिवेशन मे होनी है  । यह निर्णय झारखंड जैसे राज्यों में जनजातीय समुदायों के अधिकारों को सुरक्षित रखने की दिशा में पार्टी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

नेतृत्व चुनाव और निरंतरता

राजनीतिक दलों के अधिवेशन नेतृत्व परिवर्तन और पुनर्निर्वाचन के लिए भी जाने जाते हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा में नेतृत्व की निरंतरता देखने को मिली, जब 2021 में शिबू सोरेन को लगातार 10वीं बार पार्टी अध्यक्ष के रूप में चुना गया। उनके पुत्र और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कार्यकारी अध्यक्ष बने रहे। यह नेतृत्व की स्थिरता और पार्टी के संगठनात्मक ढांचे की मजबूती को दर्शाता है।

पार्टी कार्यकर्ताओं का एकीकरण

अधिवेशन का एक प्रमुख उद्देश्य झारखंड के साथ-साथ बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे पड़ोसी राज्यों में पार्टी कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लाना है । यह केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि इससे कार्यकर्ताओं के बीच संवाद और समन्वय को भी बल मिला।

अधिवेशन आयोजित करने के प्रमुख कारण

राजनीतिक दल समय-समय पर अधिवेशन आयोजित करते हैं, जिससे संगठनात्मक जरूरतों और बाहरी राजनीतिक चुनौतियों का समाधान निकाला जा सके।

  • आंतरिक संगठनात्मक आवश्यकताएँ: नेतृत्व परिवर्तन, नीति अद्यतन और पार्टी के भीतर संरचनात्मक बदलाव।
  • बाहरी राजनीतिक चुनौतियाँ: केंद्रीय सरकार की नीतियों के विरोध में रणनीति बनाना, जैसे कि भूमि अधिकारों से संबंधित मुद्दे।
  • संगठनात्मक मजबूती: कार्यकर्ताओं को संगठित करना, सदस्यता बढ़ाना और पार्टी की पकड़ को मजबूत करना।

अधिवेशन के आयोजक और प्रमुख प्रतिनिधि

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा अधिवेशन का आयोजन किया जाता है, जिसमें पार्टी के अध्यक्ष, महासचिव और जिला एवं राज्य स्तरीय समितियाँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं। प्रतिभागियों में सांसद, विधायक, मंत्री और प्रमुख कार्यकर्ता शामिल होते हैं। 13वें अधिवेशन के लिए भी यह योजना बनाई गई है  कि इसमें विभिन्न राज्यों से प्रतिनिधियों की भागीदारी होगी।

नेतृत्व की स्थिरता और पार्टी का भविष्य

जेएमएम जैसे क्षेत्रीय दलों में नेतृत्व की निरंतरता एक महत्वपूर्ण विषय है। शिबू सोरेन 1997 से अध्यक्ष बने हुए हैं और 2021 में 10वीं बार पुनर्निर्वाचित हुए, जिससे पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व पर उनकी पकड़ साफ दिखाई देती है। यह नेतृत्व परिवर्तन के उस प्रवृत्ति से भिन्न है जो अन्य कई क्षेत्रीय दलों में देखी जाती है। साथ ही, हेमंत सोरेन की भूमिका पार्टी की उत्तराधिकार योजना की ओर भी संकेत करती है।

झामुमो का गठन और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना 19वीं सदी के महान आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा की जयंती पर हुई थी। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया था, और उनकी याद में झारखंड राज्य का गठन भी 15 नवंबर 2000 को किया गया। पार्टी के प्रमुख संस्थापकों में बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और कॉमरेड डॉ. एके रॉय शामिल थे। 4 फरवरी 1972 को पार्टी का औपचारिक संगठन किया गया, जिसमें बिनोद बिहारी महतो को अध्यक्ष और शिबू सोरेन को महासचिव बनाया गया। प्रारंभिक दौर में पार्टी ने आदिवासी, दलित और अन्य पिछड़े समुदायों के औद्योगिक एवं खनन श्रमिकों को अपने साथ जोड़ा।

झामुमो का राजनीतिक संघर्ष और विकास

झामुमो का प्रारंभिक दौर संघर्षों से भरा रहा। पार्टी ने औद्योगिक और खनन क्षेत्रों में काम करने वाले आदिवासियों और दलितों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। इस बीच, शिबू सोरेन के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से नज़दीकियों के कारण पार्टी में असंतोष पनपा और इसके कुछ युवा नेताओं ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का गठन किया। 1980 में, झामुमो नेता बिनोद बिहारी महतो ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के विरोध में “झामुमो (बी)” नामक एक अलग गुट बनाया। हालांकि, 1990 में यह गुट वापस झामुमो में शामिल हो गया। 1987 में निर्मल महतो की हत्या के बाद पार्टी में उथल-पुथल मची, लेकिन राम दयाल मुंडा के नेतृत्व में आदिवासी संगठनों को एकजुट कर झारखंड अलग राज्य की मांग को फिर से गति दी गई। 1988-89 में झामुमो और आजसू ने मिलकर कई आर्थिक नाकाबंदियां और आंदोलन किए, जिससे राज्य निर्माण की मांग को मजबूती मिली।

झारखंड राज्य का गठन और झामुमो की भूमिका 

2000 में बिहार विधानसभा ने झारखंड राज्य निर्माण के लिए विधेयक पारित किया और 15 नवंबर 2000 को झारखंड भारत का 28वां राज्य बना। इसके बाद झामुमो ने कई राजनीतिक गठबंधन किए और सत्ता में अपनी जगह बनाई। 2005 में झामुमो के नेता शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत न होने के कारण जल्द ही इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, उन्होंने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली। इसके अलावा, मनमोहन सिंह सरकार में वे कोयला मंत्री भी रहे। हेमंत सोरेन ने 13 जुलाई 2013 को झारखंड के 9वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 2019 में एक बार फिर झामुमो ने बहुमत हासिल किया और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने।

झारखंड मुक्ति मोर्चा का सफर संघर्ष, सत्ता और समझौतों से भरा रहा है। आदिवासी और श्रमिक हितों की रक्षा से शुरू हुआ यह आंदोलन अब राज्य की सत्ता का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। झामुमो ने झारखंड राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाई और आज भी राज्य की राजनीति में इसकी गहरी पकड़ बनी हुई है।

Key Points

-झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की 13वीं केंद्रीय महाधिवेशन 14-15 अप्रैल 2025 को रांची में आयोजित होगा, जिसमें नेतृत्व परिवर्तन की संभावना है।

– शिबू सोरेन को फिर से अध्यक्ष चुने जाने की संभावना है, जबकि कल्पना मूर्मु सोरेन को केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष या महासचिव जैसे बड़े पद दिए जा सकते हैं।

– यह परिवर्तन पार्टी के संगठन को मजबूत बनाने और युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम हो सकता है, लेकिन इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हुई है।

 

 

The News Post4u

Perwez Alam is one of the founder of The News Post4U, he brings over 4 decades of Journalism of experience, having worked with Zee News, Sadhna News, News 11, Bureau cheif of Dainik Jargarn, Govt. Accredited Crosspondent of Hindustan daily, Jansatta ect, He loves doing human intrest, political and crime related stories. Contact : 9431395522

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