
झारखंड की बहुप्रतीक्षित प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी के आरोप एक बार फिर सुर्खियों में हैं। झारखंड हाईकोर्ट ने जेपीएससी की पहली और दूसरी संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा में अनियमितताओं की जांच को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।
जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने इस मामले में सीबीआई को निर्देश देते हुए कहा कि जेपीएससी की प्रथम और द्वितीय परीक्षा की जांच के बाद दायर चार्जशीट को कोर्ट के रिकॉर्ड पर लाया जाए। इसके अलावा, केस की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करने के लिए स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की जाए। अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने 5 फरवरी की तारीख तय की है।
कोर्ट ने जताई सख्ती.
सीबीआई की ओर से बताया गया कि रांची स्थित विशेष अदालत में इन मामलों में पहले ही आरोप पत्र दाखिल किए जा चुके हैं। हालांकि, स्टेटस रिपोर्ट तैयार करने के लिए और समय देने का अनुरोध किया गया। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने सीबीआई से आरसी-5/2012 और आरसी-6/2012 नंबर के मामलों की जांच की स्थिति पर जवाब मांगा था।
कौन-कौन हैं आरोपी?
सीबीआई ने इस मामले में जेपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. दिलीप प्रसाद को मुख्य आरोपी बनाया है। उनके साथ वरीय सदस्य गोपाल प्रसाद, सदस्य राधा गोविंद नागेश, डॉ. शांति देवी, और परीक्षा नियंत्रक एलिस उषा रानी सिंह सहित कुल 37 लोगों को आरसी-5/2012 में आरोपित किया गया। वहीं, आरसी-6/2012 मामले में डॉ. दिलीप प्रसाद सहित 70 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया है।
क्या है मामला?
झारखंड लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और अनियमितताओं के आरोप लगे हैं। इन आरोपों में मैनिपुलेशन, अयोग्य उम्मीदवारों का चयन, और नियमों का घोर उल्लंघन शामिल हैं। जनहित याचिकाओं के माध्यम से इन मामलों की जांच की मांग वर्षों से की जा रही थी।
हाईकोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट कर दिया है कि अब और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोर्ट के निर्देश के बाद सीबीआई की ओर से अगली सुनवाई में स्टेटस रिपोर्ट पेश करने की संभावना है।
क्या न्याय की उम्मीद कर रहे प्रतियोगी छात्रों को इंसाफ मिलेगा, या इस मामले में भी सियासत और कानूनी दांव-पेंच के चलते सच दबा रहेगा? 5 फरवरी की सुनवाई पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं।