
परवेज़ आलम की रिपोर्ट……
झारखंड की सियासत में इस वक्त हलचलें तेज़ हैं। मंत्रिमंडल के गठन की कवायद के बीच विधायकों की दौड़-भाग अपने चरम पर है। दिल्ली से रांची तक सियासी गलियारों में सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा है—कौन होगा हेमंत कैबिनेट का हिस्सा ?
दिल्ली की तरफ़ रुख़ करें तो कांग्रेस के विधायक पहले ही पोजिशनिंग में जुट गए हैं। दीपिका पांडेय सिंह, इरफान अंसारी, कुमार जयमंगल और बंधु तिर्की जैसे नाम आलाकमान के दरवाज़े खटखटा रहे हैं। झारखंड में 28 नवंबर को नई सरकार का शपथ ग्रहण होना है, लेकिन उससे पहले यह राजनीतिक ड्रामा अपने चरम पर है। कांग्रेस, झामुमो और राजद—तीनों ही अपने-अपने विधायकों को संतुलन में लाने की जद्दोजहद में हैं।
दिल्ली और रांची के बीच सियासी लाइनें खिंच चुकी हैं
कांग्रेस के चार मंत्री बनना तय है, लेकिन जातीय और क्षेत्रीय समीकरण की गुत्थी सुलझाना आसान नहीं। अनुसूचित जाति से राधाकृष्ण किशोर या सुरेश बैठा, अल्पसंख्यक कोटे से इरफान अंसारी, और ओबीसी से ममता देवी या प्रदीप यादव मंत्री पद की रेस में सबसे आगे हैं। वहीं, दीपिका पांडेय सिंह और रामेश्वर उरांव भी अहम दावेदार माने जा रहे हैं।
झामुमो की बात करें तो संताल-कोल्हान से ज़्यादा चेहरों को कैबिनेट में शामिल करने की तैयारी है। दीपक बिरुवा, रामदास सोरेन और महिला कोटे से लुईस मरांडी या सविता महतो की चर्चा जोरों पर है। पिछली सरकार के मंत्री मिथिलेश ठाकुर की जगह इस बार अनंत प्रताप देव को मौका मिल सकता है।
राजद और माले के विधायकों की भूमिका पर सस्पेंस बरकरार
राजद के चार विधायकों में से एक को मंत्री बनने का मौका मिलेगा। सुरेश पासवान और संजय सिंह यादव इस रेस में सबसे आगे हैं। वहीं, माले से अरूप चटर्जी के मंत्री बनने की संभावना पर भी चर्चाएं हो रही हैं।
मोरहाबादी मैदान पर तैयारी जोरों पर
शपथ ग्रहण समारोह को लेकर मोरहाबादी मैदान में तैयारियां ज़ोरों पर हैं। डीसी वरुण रंजन की अगुवाई में अधिकारी समारोह स्थल का जायज़ा ले रहे हैं। सुरक्षा से लेकर वीवीआईपी मेहमानों की आवभगत और ट्रैफिक प्रबंधन तक, हर पहलू पर काम किया जा रहा है।
लेकिन बड़ा सवाल वही है—ये लामबंदी और जोड़तोड़ का खेल सत्ता के कौन-कौन से दरवाज़े खोलता है? झारखंड की सियासत में यह तय है कि हर सीट और हर मंत्री पद के पीछे की रणनीति, 28 नवंबर के बाद नए समीकरणों की इबारत लिखेगी। अब सबकी नज़रें मोरहाबादी पर टिकी हैं।”*