
परवेज़ आलम की खास रिपोर्ट ………..
16 जनवरी झारखंड के लिए एक खास तारीख है। यह दिन उस नेता की याद दिलाता है, जिसने गरीबों, मजदूरों और शोषितों की आवाज़ को बुलंद किया। स्वर्गीय महेंद्र सिंह की शहादत दिवस पर आज झारखंड उन्हें नमन कर रहा है।
सादगी और संघर्ष से भरा जीवन।
महेंद्र सिंह का जन्म 1944 में गिरिडीह के छोटे से गांव खंभरा में हुआ। सीमित शिक्षा के बावजूद, उनका ज्ञान और जागरूकता बेमिसाल थी। किताबों और अखबारों से उनका गहरा लगाव था। वह राजनीति को कुर्सी का खेल नहीं, बल्कि जनसेवा का माध्यम मानते थे।
महेंद्र सिंह ने अपने करियर की शुरुआत लाल सेना के गुरिल्ला नेता के रूप में की। शुरुआत में चुनावी राजनीति के खिलाफ रहने वाले महेंद्र सिंह ने वक्त के साथ अपने विचार बदले और बिहार विधानसभा चुनाव में कूद पड़े। गिरिडीह के बगोदर विधानसभा क्षेत्र से उन्होंने लगातार जीत दर्ज की और गरीबों के सच्चे रहनुमा बने।वे सीपीआई(एमएल) के नेता थे, लेकिन उनकी पहचान केवल पार्टी तक सीमित नहीं थी।
ईमानदारी और साहस की मिसाल।
महेंद्र सिंह के लिए राजनीति का मतलब था अन्याय के खिलाफ लड़ाई। उन्होंने खदान मालिकों, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाहियों के खिलाफ आवाज़ उठाई। सत्ता पर तीखा वार करना और जनता के हक की बात करना उनकी पहचान थी। यही वजह है कि वह नक्सल प्रभावित इलाकों में भी उतने ही लोकप्रिय थे जितने ग्रामीण क्षेत्रों में।
झूठे मामलों में फंसाए गए, पर हिम्मत नहीं हारी।
1980 के दशक में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने प्रभावशाली लोगों को चुनौती दी। इसके चलते उन्हें झूठे हत्या के मामले में फंसा दिया गया। निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन हाईकोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया। जेल में भी उन्होंने अन्य कैदियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
शहादत: विचारधारा को कुचलने की कोशिश।
2005 में 16 जनवरी को महेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह घटना उस वक्त हुई, जब वे चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। उनकी हत्या केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं थी, बल्कि एक विचारधारा को खत्म करने की कोशिश थी। लेकिन महेंद्र सिंह के विचार आज भी हर उस व्यक्ति के दिल में जिंदा हैं, जो न्याय और समानता की बात करता है।
झारखंड को एक नई राह दिखाने वाले नेता।
महेंद्र सिंह की सादगी, ईमानदारी और साहस आज भी झारखंड के लोगों को प्रेरणा देते हैं। उनकी याद में हर साल बगोदर और उनके गांव खंभरा में लोग जुटते हैं। यह साबित करता है कि महेंद्र सिंह का आंदोलन कभी खत्म नहीं होगा।उनकी मौत के सालों बाद आज भी बगोदर विधान सभा में “महेंद्र सिंह तुम जिंदा हो खेतों व खलिहानों में, जनता के अरमानो में नारे गाँव में गूंजती है”.
महेंद्र सिंह को नमन। उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि जनता के लिए एक मिशन हो सकता है।