
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट………
“एक देश-एक चुनाव”—एक ऐसा विचार जो सियासत की गहराइयों में हलचल मचा रहा है, अब संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की चौखट पर दस्तक दे चुका है। ये वो मंच होगा जहां सत्ता और विपक्ष के बीच का ‘महाभारत’ अपनी नयी गाथा लिखेगा।
कांग्रेस ने अपने योद्धाओं की टोली तैयार कर ली है। प्रियंका गांधी, रणदीप सुरजेवाला, मनीष तिवारी और सुखदेव भगत—चारों नाम फाइनल कर स्पीकर के पास भेज दिए गए हैं। इन चारों नेताओं के कंधों पर अब कांग्रेस का पक्ष रखने का भार होगा।
जेपीसी: एक और ‘कुश्ती का अखाड़ा’।
जेपीसी, यानी संयुक्त संसदीय समिति, एक ऐसा मंच जहां संसद के दोनों सदनों के सदस्य मिलकर किसी भी मुद्दे या बिल की गहन समीक्षा करते हैं। लेकिन यह सिर्फ समीक्षा नहीं, राजनीतिक तराजू पर नीतियों और विचारधाराओं को तौलने का एक मौका भी है।
कांग्रेस के योद्धा:
• प्रियंका गांधी: कांग्रेस का युवा और महिला चेहरा, जो इस लड़ाई को एक नई धार दे सकती हैं।
• रणदीप सुरजेवाला और मनीष तिवारी: दोनों कानूनी दांवपेंचों में माहिर, शब्दों के योद्धा।
• सुखदेव भगत: आदिवासी नेतृत्व का प्रतीक, जिनकी बातों में ज़मीन की गूंज सुनाई देती है।
क्या होगा जेपीसी का दायरा?
लोकसभा स्पीकर इस समिति का स्वरूप तय करेंगे। अमूमन लोकसभा के सदस्य राज्यसभा की तुलना में दुगुने होते हैं। यह समिति अपने अध्ययन के आधार पर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी, जो आगे संशोधित बिल का आधार बनेगी।
वन नेशन-वन इलेक्शन:
यह सिर्फ एक संवैधानिक संशोधन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक समर है। इसे अमल में लाने के लिए सरकार को विशेष बहुमत चाहिए। यही वजह है कि सरकार आम सहमति बनाने के लिए जेपीसी का सहारा ले रही है।
सवालों की परछाई में ‘आम सहमति’
क्या कांग्रेस के ये चार नाम सत्ता पक्ष के ‘एक देश-एक चुनाव’ के सपने को चुनौती दे पाएंगे? या फिर यह समिति महज एक और औपचारिकता बनकर रह जाएगी?
राजनीतिक पंडितों की नज़रें इस सवाल पर टिकी हैं।
क्योंकि यह फैसला सिर्फ चुनावी प्रणाली को नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को हिला सकता है।
अगले कुछ दिनों में देश के सियासी मंच पर यह देखना दिलचस्प होगा कि

की यह गाड़ी कितनी दूर तक दौड़ती है और कौन इसे रोकने की ताकत रखता है।