
परवेज़ आलम की रिपोर्ट ………
आज हम बात करेंगे झारखंड की राजनीति के उस चेहरे की, जो अपने। मधुपुर की जनता के लिए यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। राजनीति में पिता के साये में पले-बढ़े हफीजुल ने जिस सफर की शुरुआत की, आज वह झारखंड की सत्ता का एक अहम चेहरा हैं।”
हफीजुल हसन अंसारी, झामुमो के दिवंगत नेता हाजी हुसैन अंसारी के पुत्र हैं। पिता के निधन के बाद, उन्होंने सरकारी नौकरी को छोड़कर राजनीति की ओर रुख किया।
“चलिए, थोड़ा पीछे चलते हैं। यह कहानी 2020 से शुरू होती है, जब कोरोना के संक्रमण ने झारखंड की सियासत से हाजी हुसैन अंसारी जैसे कद्दावर नेता को छीन लिया। हेमंत सोरेन की कैबिनेट में मंत्री रहे हाजी साहब का जाना झारखंड के लिए एक बड़ी क्षति थी। लेकिन सवाल उठा कि उनकी खाली हुई जगह को कौन भरेगा?”
2021 का उपचुनाव आया। मधुपुर विधानसभा की सीट पर झामुमो ने हफीजुल को मौका दिया और उन्होंने न सिर्फ जीत हासिल की, बल्कि यह दिखा दिया कि वे राजनीति में अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलने के लिए तैयार हैं।
“लेकिन सवाल सिर्फ चुनाव जीतने का नहीं था। सवाल था, क्या वे अपने पिता की तरह जनता के विश्वास पर खरे उतरेंगे? और यहीं से उनके सियासी सफर की असली शुरुआत होती है।”
बीआईटी सिंदरी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले हफीजुल ने झारखंड राज्य खनिज निगम में बतौर सर्वेयर करियर शुरू किया। लेकिन राजनीति शायद उनके खून में थी। पिता के साथ 1995 से ही साये की तरह रहे हफीजुल ने राजनीति के गुर वहीं सीखे।
“यह कहना आसान है कि राजनीति विरासत में मिली। लेकिन क्या यह विरासत इतनी आसान थी? हफीजुल ने अपने पिता के अभियान में शामिल होकर जमीनी राजनीति की वो हर बारीकी सीखी, जो सिर्फ किताबों में नहीं मिलती।”
2021 से लेकर आज तक हफीजुल हसन अंसारी ने मंत्री पद संभाला। चाहे चंपाई सोरेन की कैबिनेट हो, या फिर हेमंत सोरेन की सत्ता वापसी, हर बार उन्होंने अपनी भूमिका निभाई। लेकिन सवाल यह है—क्या मधुपुर की जनता उन्हें सिर्फ अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में देखती है, या उनकी खुद की पहचान भी बन चुकी है?
“चार भाइयों में सबसे बड़े हफीजुल हसन अंसारी की यह यात्रा सिर्फ राजनीति की नहीं, बल्कि एक संघर्ष की है। लेकिन यह संघर्ष अब भी जारी है। राजनीति में जनता का विश्वास जितना कठिन है, उसे बनाए रखना उससे भी कठिन। और यही हफीजुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।”
“तो क्या वे झारखंड की राजनीति में अपने पिता की तरह कद्दावर नेता बन पाएंगे? या फिर यह कहानी भी सियासत की भूल-भुलैया में खो जाएगी?”