
परवेज़ आलम की रिपोर्ट ……….
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव, जिनके हालिया बयान ने राजनीति से लेकर न्यायिक गलियारों तक हलचल मचा दी है, अब सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की नजरों में हैं।
क्या है मामला?
विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में जस्टिस यादव ने बयान दिया कि समान नागरिक संहिता (UCC) हिंदू बनाम मुस्लिम विषय है। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ने अपनी परंपराओं की कमियों को सुधार लिया है, लेकिन मुस्लिम समाज ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने बहुविवाह, बिना पत्नी की सहमति के दूसरी शादी और इस्लाम में सहिष्णुता की कमी का मुद्दा उठाया। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि “कठमुल्लापन देश के लिए घातक है” और हिंदू धर्म सहिष्णुता के बीज बोता है।
सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान।
10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले पर संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट से जानकारी मांगी थी। और अब, खबरें आ रही हैं कि जस्टिस यादव को 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की बैठक में तलब किया गया है। इस बैठक की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना करेंगे।
राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस।
जस्टिस यादव के इस बयान से उपजे विवाद ने संसद तक को हिला दिया है। 13 दिसंबर को राज्यसभा में विपक्ष के 55 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया।
क्या है इस बयान का बड़ा सवाल?
VHP के मंच पर, न्यायपालिका की गरिमा से जुड़ी सीमाओं को पार करते हुए, समान नागरिक संहिता को हिंदू-मुस्लिम विषय बनाना, क्या एक जज के लिए उचित है?
क्या यह बयान देश के संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना को चुनौती देता है?
और सबसे अहम, क्या इस तरह के बयान न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा नहीं करते?
सवाल बड़ा है, जवाब का इंतजार!
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम इस पूरे मामले की समीक्षा करेगा। लेकिन क्या न्यायपालिका का यह आंतरिक संकट जनता के न्याय में विश्वास को कम करेगा, या इसे सुलझाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे?
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