
परवेज़ आलम .
देश की राजनीति में एक बड़ा और अप्रत्याशित मोड़ उस वक्त आया जब मोदी सरकार ने 2026 में होने वाली जनगणना के साथ-साथ जातीय जनगणना (Caste Census) करवाने का ऐलान कर दिया। यह वही मांग थी जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले कई सालों से अपना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना कर पेश कर रहे थे। ‘जितनी आबादी, उतना हक’ जैसे नारों के जरिए कांग्रेस सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व के सवाल को राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र बना चुकी थी। लेकिन अब यही मुद्दा, सत्ता पक्ष की रणनीति का हिस्सा बनता दिख रहा है। बुधवार को केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट मीटिंग के बाद यह स्पष्ट किया कि सरकार अब जाति आधारित आंकड़ों को भी आधिकारिक रूप से एकत्र करेगी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस हमेशा इस मुद्दे पर असमंजस की स्थिति में रही है और कभी भी ठोस राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ इसे लागू नहीं किया। वैष्णव ने कहा कि मोदी सरकार ने समाज के हर वर्ग के हित में फैसले लिए हैं और यह निर्णय भी उसी दिशा में एक बड़ा कदम है।
क्यों जातीय जनगणना का फैसला कांग्रेस के लिए झटका है?
जातीय जनगणना की मांग पर सबसे मुखर रहे राहुल गांधी को यह उम्मीद थी कि यह मुद्दा बीजेपी के ओबीसी और दलित वोट बैंक में सेंध लगाएगा। 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में इस मुद्दे ने विपक्ष को फायदा भी पहुंचाया। लेकिन अब जब मोदी सरकार ने खुद इसे स्वीकार कर लिया है, तो कांग्रेस की बढ़त पर पानी फिरता दिख रहा है। सरकार के इस फैसले ने राहुल गांधी के उस नैरेटिव को कमजोर कर दिया है, जिसमें वे बीजेपी को सामाजिक न्याय विरोधी बताकर घेरते थे।
पहला असर: बिहार और बंगाल में बीजेपी को लाभ की उम्मीद.
बिहार में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। जातीय जनगणना का मुद्दा यहां सबसे अधिक प्रभावी साबित हो सकता है, क्योंकि राज्य की राजनीति पूरी तरह से जातीय समीकरणों पर आधारित है। हालांकि नीतीश कुमार की सरकार ने पहले ही जातिगत सर्वे कराया है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र की ओर से इसे करवाना, ओबीसी मतदाताओं को यह संकेत देगा कि नरेंद्र मोदी सरकार उनकी गिनती और हक़ को लेकर गंभीर है। इससे कांग्रेस और उसके सहयोगियों, खासकर आरजेडी को बड़ा नुकसान हो सकता है।
29 साल पहले जनता दल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा की समाजवादी सरकार के केंद्रीय कैबिनेट द्वारा जातिगत जनगणना के निर्णय को पलटने वाली NDA सरकार को दुबारा उस निर्णय पर निर्णय लेने के लिए बाध्य करने वाले आदरणीय लालू जी समेत सभी समाजवादियों की जीत पर पटाखा फोड़ सामाजिक न्यायवादियों… pic.twitter.com/sAo1d6XMpx
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) April 30, 2025
उत्तर प्रदेश में समाजवादी समीकरण पर असर.
2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां सपा प्रमुख अखिलेश यादव ‘PDA’ (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण के सहारे बीजेपी को चुनौती देने की तैयारी में हैं। जातीय जनगणना, जिसे अब केंद्र सरकार लागू करेगी, इस समीकरण को भी प्रभावित कर सकती है। बीजेपी की कोशिश होगी कि वह ओबीसी वर्ग को यह भरोसा दिलाए कि पार्टी अब उनकी गिनती और हिस्सेदारी दोनों सुनिश्चित करने जा रही है। इस तरह से विपक्ष के लिए ‘सामाजिक न्याय’ का नैरेटिव खड़ा करना और कठिन हो जाएगा।
राजनीतिक बढ़त से सामाजिक प्रभाव तक.
1931 के बाद देश में जातियों की कोई आधिकारिक जनगणना नहीं हुई। आज़ाद भारत में यह पहली बार होगा जब केंद्र सरकार पूरे देश में जातीय आंकड़े जुटाएगी। यह कदम न केवल राजनीतिक असर डालेगा, बल्कि नौकरियों, शिक्षा, कल्याण योजनाओं और संसाधनों के वितरण में भी नए बदलाव की नींव रख सकता है। मोदी सरकार इसे ‘सामाजिक समावेश’ और ‘डाटा आधारित नीति निर्माण’ के रूप में प्रस्तुत कर सकती है, जो कि कांग्रेस के पुराने वादों को अप्रासंगिक बना देगा।
कांग्रेस के लिए दोहरी चुनौती.
राहुल गांधी अब तक इस मुद्दे के सबसे बड़े पैरोकार रहे हैं। उन्होंने न केवल केंद्र को घेरा, बल्कि कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस शासित सरकारों से जातीय आंकड़े जारी करने की मांग भी की। अब जबकि बीजेपी खुद यह पहल कर रही है, कांग्रेस के पास या तो इसका स्वागत करने का विकल्प है—जो उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर दिखा सकता है, या विरोध करने का विकल्प—जिससे वे विरोधाभासी नजर आएंगे। इस दोहरे संकट में कांग्रेस को अपनी रणनीति फिर से गढ़नी होगी।
सत्ता की बाज़ी कैसे पलटी ?
जातीय जनगणना का मुद्दा एक बार फिर साबित करता है कि राजनीति में मुद्दे स्थायी नहीं होते, बल्कि उनका उपयोग और नियंत्रण ही असली खेल है। कांग्रेस ने जिस सामाजिक न्याय के एजेंडे को खड़ा किया, अब उसी को अपनाकर बीजेपी उसे उलझाने की तैयारी में है। 2026 की जनगणना के साथ जातीय गणना का प्रस्ताव, न केवल राहुल गांधी के एजेंडे को कमजोर करता है, बल्कि 2027 तक बीजेपी को ओबीसी समाज में फिर से अपनी स्थिति मज़बूत करने का अवसर भी देता है।
जाति जनगणना कराने का केंद्र सरकार का फैसला स्वागतयोग्य है। जाति जनगणना कराने की हमलोगों की मांग पुरानी है। यह बेहद खुशी की बात है कि केन्द्र सरकार ने जाति जनगणना कराने का निर्णय किया है। जाति जनगणना कराने से विभिन्न वर्गों के लोगों की संख्या का पता चलेगा जिससे उनके उत्थान एवं…
— Nitish Kumar (@NitishKumar) April 30, 2025