
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट
झारखंड विधानसभा में जब वित्त मंत्री डॉ. राधाकृष्ण किशोर ने 1.45 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया, तो कागज़ पर यह एक महत्वाकांक्षी दस्तावेज़ लगा। लेकिन जब इस बजट की तह में उतरते हैं, तो सवाल उठते हैं कि क्या यह वास्तव में झारखंड की जनता के सपनों और उम्मीदों का बजट है या फिर आंकड़ों की बाजीगरी मात्र?
बजट का आकार बड़ा, लेकिन क्या प्रभाव भी बड़ा?
झारखंड सरकार ने इस बार का बजट 1,45,400 करोड़ रुपये का रखा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13% अधिक है। सरकार ने यह भी दावा किया कि राजस्व व्यय में 20.48% की वृद्धि हुई है और पूंजीगत व्यय में 7.81% की बढ़ोतरी की गई है। लेकिन असली सवाल यह है कि इस बढ़े हुए बजट का लाभ किसे मिलेगा?
सरकार ने दावा किया कि सामाजिक क्षेत्र के लिए 62,840 करोड़ रुपये और आर्थिक क्षेत्र के लिए 44,675 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। लेकिन यह पैसा किन योजनाओं में और किस तरह खर्च होगा, इसकी ठोस रूपरेखा बजट भाषण में नदारद रही।
क्या बजट सिर्फ सरकारी आश्वासन है?
राज्य की अर्थव्यवस्था को 2030 तक 10 ट्रिलियन रुपये तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन इसके लिए ठोस रणनीति क्या होगी? बजट में इसका जवाब नहीं मिलता।
मंईयां सम्मान योजना के तहत 18 से 50 साल की महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा किया गया है। इसके लिए 13,363 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। लेकिन दो महीने तक राशि रुकी रही, और अब सरकार होली के पहले एकमुश्त 7500 रुपये देने का वादा कर रही है। सवाल यह है कि अगर बजट में धनराशि पहले से आवंटित थी, तो यह देरी क्यों हुई?
मंईयां सम्मान योजना
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार की सत्ता में वापसी के बाद पेश पहले बजट में मंईयां सम्मान का असर दिखा. मंईयां सम्मान देने वाले विभाग का बजट एक झटके में लगभग डबल हो गया. 11 से अधिक विभागों के बजट में कटौती करते हुए सरकार ने एक विभाग का बजट 95 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है. झारखंड के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने शिक्षा और कल्याण विभाग को छोड़ सभी विभागों के बजट पर कैंची चला दी है. वर्ष 2025-26 के बजट में सबसे बड़ा फायदा कल्याण एवं समाज कल्याण विभाग को हुआ है. इस मद में सरकार ने वर्ष 2024-25 के बजट में कुल बजट की राशि का 8.96 फीसदी का प्रावधान किया था. वर्ष 2025-26 के बजट में इसमें बंपर बढ़ोतरी करते हुए 17.47 प्रतिशत कर दिया है. यह पिछले बजट की तुलना में करीब 95 प्रतिशत अधिक है. शिक्षा विभाग के बजट में 0.69 प्रतिशत की वृद्धि की गयी है. ओल्ड पेंशन स्कीम लागू होने की वजह से सरकार ने पेंशन मद में बजट में 0.22 प्रतिशत की वृद्धि की गयी
रोजगार और आर्थिक विकास: सिर्फ़ दावे या कोई ठोस योजना?
झारखंड में बेरोजगारी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। इस बजट में युवाओं के लिए कितनी नौकरियां सृजित होंगी? इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया गया। राज्य सरकार ने यह तो बताया कि आर्थिक विकास दर 7.5% रहेगी, लेकिन इस विकास दर का आम जनता की रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर क्या असर पड़ेगा, यह स्पष्ट नहीं किया गया।
कृषि क्षेत्र और छोटे व्यापारियों के लिए बजट में क्या ठोस योजनाएं हैं? राज्य में लाखों किसान सूखे और बाजार की अनिश्चितताओं से जूझ रहे हैं, लेकिन उनके लिए सिर्फ़ कर्ज़माफी के दावे हैं, स्थायी समाधान नहीं।
बजट में कर्ज़ और घाटे का गणित
सरकार ने दावा किया कि राजकोषीय घाटा 1.1% तक सीमित रखा गया है और ऋण-जीडीपी अनुपात को 27.3% पर लाने का लक्ष्य है। लेकिन यह आंकड़े तब तक बेकार हैं जब तक कि राज्य के राजस्व स्रोतों को बढ़ाने के लिए कोई ठोस रणनीति न बने। सरकार का अनुमान है कि 2025-26 में 61,056 करोड़ रुपये राजस्व आएगा, लेकिन यह कैसे आएगा, इसका स्पष्ट विवरण नहीं दिया गया।
क्या यह जनता का बजट है?
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार का यह पहला बजट कई मायनों में प्रतीकात्मक है। यह बजट राज्य की राजनीतिक मजबूरियों को दर्शाता है। इसमें विकास के दावे हैं, लेकिन योजनाओं की जमीनी हकीकत पर सवाल उठते हैं।
झारखंड जैसे राज्य, जहां के संसाधनों का बड़ा हिस्सा बाहरी कंपनियों और राज्यों को जाता है, वहाँ यह बजट आत्मनिर्भरता का संदेश नहीं देता। रोजगार के अवसरों को बढ़ाने और राज्य की जनता को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बजट में कोई ठोस पहल नहीं दिखती।
क्या यह बजट जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप है?
झारखंड का यह बजट आंकड़ों और दावों से भरा पड़ा है, लेकिन जब हम इसकी गहराई में जाते हैं, तो यह कहीं न कहीं खोखला नज़र आता है। बजट भाषण में ‘स्वाभिमान’, ‘स्वावलंबन’ और ‘विकास’ जैसे शब्दों की भरमार थी, लेकिन क्या यह सिर्फ़ भाषण तक सीमित रह जाएगा, या ज़मीनी हकीकत में भी बदलाव लाएगा? यह देखना अभी बाकी है।