
महागठबंधन की अंदरूनी राजनीति से संतुष्ट नहीं है JMM.
बिहार चुनाव: टकराव की दिशा में बढ़ रही है सियासत।
परवेज़ आलम.
हेमंत मंत्रिमंडल में राजद कोटे के मंत्री संजय यादव की कुर्सी खतरे मे है ? क्या कैबिनेट से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा ? क्या जेएमएम बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन से अलग हो जाएगा ? दरअसल झारखंड की सियासत में इन दिनों यह सवाल लगातार उछाले जा रहें हैं । खासकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले ? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि JMM की ओर से संकेत मिल रहे हैं कि महागठबंधन की अंदरूनी राजनीति से वह संतुष्ट नहीं है, और स्थिति नहीं संभली तो राजद कोटे से मंत्री संजय यादव की झारखंड कैबिनेट से छुट्टी हो जाएगी ।
दरअसल, हाल ही में JMM ने एक आधिकारिक बयान जारी कर यह साफ कर दिया है कि वह बिहार में राजद के रवैये से बेहद नाराज है। पार्टी ने दो टूक शब्दों में कहा है कि अगर उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव में “सम्मानजनक भागीदारी” नहीं दी गई, तो वह 12 से 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर अकेले चुनाव लड़ेगी।
JMM महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि महागठबंधन की किसी बैठक में पार्टी को शामिल नहीं किया गया है, यहां तक कि गठित की गई 21 सदस्यीय समन्वय समिति में भी JMM को कोई स्थान नहीं मिला। इससे पार्टी खुद को “उपेक्षित और तिरस्कृत” महसूस कर रही है।
पार्टी ने 2019 के झारखंड विधानसभा चुनावों की याद दिलाई, जब सीमित सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद JMM ने राजद को मंत्री पद दिया था। लेकिन अब बिहार में JMM की अनदेखी की जा रही है, जो पार्टी को मंजूर नहीं है।
बॉर्डर बेल्ट पर JMM की नजर
JMM ने साफ तौर पर संकेत दिया है कि वह बिहार-झारखंड सीमावर्ती इलाकों — जैसे चकाई, झाझा, तारापुर, कटोरिया, बांका, मनिहारी, रूपौली, बनमनखी, जमालपुर और धमदाहा — में चुनाव लड़ना चाहती है। इन क्षेत्रों में झारखंडी संस्कृति, भाषा और आदिवासी पहचान की मजबूत मौजूदगी है, जिसका राजनीतिक लाभ JMM उठाना चाहती है।
पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, JMM का असली मकसद 4-5 सीटों की सम्मानजनक साझेदारी है, लेकिन ज्यादा सीटों की मांग कर वो राजनीतिक दबाव बना रही है। अगर बातचीत नहीं बनी, तो पार्टी सीमावर्ती सीटों पर राजद को सीधी चुनौती दे सकती है, और इसके झारखंड सरकार में भी असर दिख सकता है — खासकर संजय यादव की कैबिनेट में मौजूदगी पर।
JMM का राष्ट्रीय विस्तार का एजेंडा
झामुमो सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं रहना चाहता। हाल ही में संपन्न पार्टी के केंद्रीय अधिवेशन में यह स्पष्ट कर दिया गया कि JMM अब राष्ट्रीय पहचान बनाना चाहता है। इसके तहत पार्टी बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और छत्तीसगढ़ में भी अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है।
गौरतलब है कि अतीत में JMM का ओडिशा में छह विधायक, बिहार में एक विधायक और एक सांसद भी रह चुका है। ऐसे में पार्टी को भरोसा है कि सीमावर्ती इलाकों में उसकी पैठ उसे क्षेत्रीय से राष्ट्रीय स्तर तक ले जा सकती है।
राजद और JMM की पुरानी साझेदारी
JMM ने यह भी याद दिलाया कि 2024 में तेजस्वी यादव और राजद सांसद मनोज झा ने रांची आकर कई दिनों
तक रणनीतिक बैठकों में हिस्सा लिया था। तब महागठबंधन के तहत राजद को छह सीटें मिली थीं और मंत्री पद भी। JMM को उम्मीद है कि बिहार में भी उसे उसी स्तर की हिस्सेदारी दी जाएगी।
क्या बदलेगा बिहार का राजनीतिक समीकरण?
JMM की सक्रियता और खुले तेवरों ने बिहार की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में, जहां JMM की प्रभावशाली पकड़ है, वहां उसका अकेले उतरना राजद के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में सीटों के तालमेल को लेकर JMM और राजद के बीच कोई सहमति बनती है या फिर टकराव की दिशा में सियासत आगे बढ़ती है।