
झारखंड की सियासी फिजा इन दिनों एक बयान से राजनीति गरमाई हुई है। राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन का एक कथित बयान— “शरीयत संविधान से ऊपर है” — राजनीतिक हलकों में बीते चार दिनों से हलचल मचा रखा है। विपक्षी दल भाजपा ने इस बयान को लेकर मंत्री पर सीधा हमला बोला है और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से उनकी तत्काल बर्खास्तगी की मांग की है।
लेकिन क्या मंत्री ने सचमुच ऐसा कहा था? या फिर बयान को संदर्भ से काट कर, अपने-अपने राजनीतिक एजेंडे के अनुसार परोसा गया? राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप नई बात नहीं, लेकिन जब बात संविधान और धार्मिक मूल्यों की हो, तो सावधानी और संवेदनशीलता दोनों की जरूरत होती है।
भाजपा का हमला: ‘संविधान से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं’
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस कथन को भारतीय संविधान का अपमान बताते हुए तीखा विरोध दर्ज कराया। उन्होंने कहा कि हसन का यह बयान सामाजिक सौहार्द्र के लिए खतरा है और झारखंड जैसे विविधता वाले राज्य में इस तरह की सोच की कोई जगह नहीं हो सकती। मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से साफ शब्दों में मांग की कि हसन को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया जाए।
मंत्री की सफाई: ‘बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया’
इस पूरे विवाद के बीच मंत्री हफीजुल हसन ने मीडिया के सामने आकर सफाई दी और कहा कि उनका बयान गलत संदर्भ में प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा, “मैं बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के बनाए संविधान को सर्वोपरि मानता हूं। मेरी राजनीति हमेशा सामाजिक न्याय, समावेशिता और बराबरी के सिद्धांतों पर आधारित रही है। मैं ऐसे किसी भी बयान का समर्थन नहीं करता जो देश के मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध हो।”
हसन ने आगे जोड़ा, “संविधान ही हमें धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। मेरा विश्वास उसी संविधान पर है, जिसने हमें यह आजादी और अधिकार दिए हैं।”
भाजपा नेताओं पर पलटवार: ‘नफरत की राजनीति बंद हो’
हसन ने अपनी सफाई में भाजपा नेताओं पर भी पलटवार किया। उन्होंने कहा, “देश के कई केंद्रीय मंत्री मंच से अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काऊ बातें करते आए हैं— किसी ने ‘गोली मारो’ के नारे लगवाए, तो किसी ने देश छोड़ने की धमकी दी। क्या वह संविधान की रक्षा है या संविधान से खिलवाड़?”
उन्होंने स्पष्ट किया कि धर्म को लेकर प्रेम होना स्वाभाविक है, लेकिन यह प्रेम दूसरे धर्म के प्रति नफरत नहीं बन जाना चाहिए। “हम सबको अपने-अपने धर्म से लगाव हो सकता है, लेकिन उस लगाव में दूसरों के धर्म का अपमान न हो, यही संविधान की आत्मा है,” उन्होंने कहा।
“संवैधानिक मूल्यों से नहीं हटूंगा”: हसन का संकल्प.
बयान के अंत में हसन ने यह स्पष्ट किया कि वे अपने संवैधानिक कर्तव्यों से कभी पीछे नहीं हटेंगे। “मैं झारखंड के हर समुदाय के लिए न्याय, समानता और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। संविधान मेरी राजनीति की धुरी है और वही मेरी सोच की दिशा तय करता है।”
यह विवाद केवल एक बयान का नहीं है। यह एक बड़े विमर्श का हिस्सा है—धर्म और संविधान के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती का। जब राजनीतिक दल इस संतुलन को अपने-अपने नजरिए से तोड़ते-मरोड़ते हैं, तो सवाल उठता है: क्या वाकई चिंता संविधान की है या उसका इस्तेमाल सियासी लाभ के लिए हो रहा है?