
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट
झारखंड विधानसभा के सभागार में जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने माइक संभाला, तो उनका संदेश बिल्कुल स्पष्ट था— “विधानसभा भवन लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर है!” और यह मंदिर किसी धर्म, जाति या व्यक्ति विशेष की जागीर नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षाओं का पवित्र स्थल है।
शनिवार को नव-निर्वाचित विधायकों के लिए आयोजित दो दिवसीय प्रबोधन सह प्रशिक्षण कार्यक्रम के शुभारंभ पर मुख्यमंत्री ने लोकतंत्र की इस पवित्रता को रेखांकित किया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि “इस सदन में भले ही पक्ष और विपक्ष के विचार अलग हों, लेकिन यह लोकतांत्रिक व्यवस्था सबको साथ लेकर चलने के लिए है।”
जनप्रतिनिधियों की पाठशाला!
अब जरा समझिए, यह प्रशिक्षण सत्र कोई साधारण औपचारिकता नहीं थी।
बजट सत्र से पहले विधायकों को उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का स्मरण कराना था। यानी, उन्हें सिखाया गया कि कैसे प्रश्नकाल में सरकार से जवाब मांगा जाए, शून्यकाल में जनहित के मुद्दे उठाए जाएं, विधायिका की कार्यवाही को प्रभावी बनाया जाए, और सबसे जरूरी— लोकतंत्र की ताकत को समझा जाए। छठी झारखंड विधान सभा के सदस्यों के प्रशिक्षण को ध्यान में रखकर आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है।
बात सिर्फ विधायकों की नहीं, लोकतंत्र की गरिमा की भी!
हेमंत सोरेन ने अपने संबोधन में कहा,
👉 “सीखने की कोई उम्र नहीं होती।”
👉 “जो भी इस सदन में आते हैं, वे सीखते भी हैं और जनता की आकांक्षाओं को पटल पर रखते भी हैं।”
👉 “सदन की कार्यवाही में सभी सदस्यों को साथ लेकर राज्य को समृद्ध और विकसित बनाने के लिए आगे बढ़ना जरूरी है।”
यानी, यह सिर्फ सत्ता की कुर्सी का सवाल नहीं, जनता के प्रति जवाबदेही का संकल्प है।
मुख्यमंत्री, राज्यसभा के उपसभापति, संसदीय कार्य मंत्री और अन्य गणमान्य
सिर्फ भाषण नहीं, एक मजबूत संदेश!
यह आयोजन सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने का संकल्प था।
झारखंड विधानसभा के प्रबोधन कार्यक्रम में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, विधानसभाध्यक्ष रबींद्र नाथ महतो, संसदीय कार्य मंत्री राधा कृष्ण किशोर, मंत्रीगण और कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में विधायकों को उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का स्मरण कराया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बजट सत्र के दौरान विधायकों को सदन की कार्यवाही को बेहतर ढंग से समझने और लोकतंत्र को मजबूत बनाने में योगदान देने के लिए तैयार करना था।
कार्यक्रम में विधायकों की भूमिका, प्रश्नकाल का महत्व, शून्यकाल, व्यवधान, विधि निर्माण, बजट और वित्तीय मामलों पर विस्तार से चर्चा की गई। साथ ही, नए और अनुभवी विधायकों के बीच विचारों के आदान-प्रदान को भी प्रोत्साहित किया गया।
सवाल यह है कि क्या यह सत्र महज औपचारिकता था या विधायकों ने वास्तव में कुछ सीखा?
क्योंकि लोकतंत्र का यह मंदिर तभी पवित्र रहेगा, जब इसमें जनता की आवाज गूंजेगी, न कि सत्ता का अहंकार!
तो अगली बार जब विधानसभा की कार्यवाही में हंगामा हो, तो याद रखिएगा— यहां सिर्फ कुर्सियों की नहीं, लोकतंत्र की परीक्षा होती है!