परवेज़ आलम
झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे को अपना प्रमुख हथियार बनाया। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दिया गया यह नारा पार्टी के प्रचार अभियान का केंद्र बन गया। लेकिन चुनाव नतीजों ने दिखा दिया कि यह नारा बीजेपी के लिए फायदे की जगह नुकसान लेकर आया।
संथाल परगना में मिली करारी हार
संथाल परगना को ध्यान में रखकर बीजेपी ने इस नारे को खूब उछाला। यह इलाका आदिवासी और मुस्लिम बहुल है। यहां 18 सीटों में से बीजेपी सिर्फ जरमुंडी सीट जीत पाई, जबकि बाकी 17 सीटों पर झामुमो, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन (‘इंडिया’ गठबंधन) ने कब्जा जमाया। राजमहल से ताजुद्दीन, बोरियो से धनंजय सोरेन, शिकारीपाड़ा से आलोक कुमार सोरेन और दुमका से बसंत सोरेन जैसे झामुमो के नेता भारी मतों से जीते।
ध्रुवीकरण की राजनीति बनी उलटी
बीजेपी ने दावा किया कि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के चलते हिंदुओं की आबादी कम हो रही है और मुसलमानों की बढ़ रही है। पार्टी ने 1951 से 2011 के बीच हिंदू आबादी में 22% गिरावट और मुस्लिम आबादी में 14% बढ़ोतरी का आंकड़ा पेश किया। इसके साथ ही, ‘रोटी, बेटी और माटी बचाने’ का नारा दिया गया।
लेकिन जानकार मानते हैं कि इस नारे ने उलटा असर किया। मुस्लिम मतदाता ‘इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में और अधिक एकजुट हो गए। वहीं, आदिवासी वोटरों को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने साथ बनाए रखा।
आदिवासी वोट बीजेपी के हाथ से फिसला
आदिवासी बहुल झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए। यह दिखाता है कि आदिवासी समुदाय ने बीजेपी की नीतियों और नारों को सिरे से खारिज कर दिया।
बीजेपी के लिए बड़ा सबक
‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे और ध्रुवीकरण की राजनीति ने बीजेपी के लिए नतीजों को मुश्किल बना दिया। झारखंड के इस चुनाव से यह स्पष्ट हो गया कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बजाय स्थानीय मुद्दों और विकास के सवालों पर ध्यान देना अब और भी जरूरी हो गया है।