परवेज़ आलम
झारखंड की विधानसभा में इस बार सियासत के नए रंग नजर आए। जेएमएम गठबंधन ने रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन करते हुए 81 में से 56 सीटें जीतकर अपनी ताकत का लोहा मनवाया। इस जीत ने जहां एनडीए के खेमे में खलबली मचाई, वहीं झामुमो और कांग्रेस की दोस्ती ने झारखंड की सियासी जमीन पर अपनी पकड़ को और मजबूत कर लिया।
जेएमएम की लहर, भाजपा बेदम
झामुमो ने 43 सीटों पर चुनाव लड़ा और 34 सीटें जीतकर साबित कर दिया कि झारखंड में उसकी पकड़ पहले से भी मजबूत है। कांग्रेस ने भी अच्छा प्रदर्शन करते हुए 16 सीटों पर बाजी मारी। आरजेडी ने अपनी पुरानी उपलब्धियों को पीछे छोड़ते हुए 6 में से 4 सीटों पर जीत हासिल की।
दूसरी ओर, भाजपा को इस चुनाव में करारा झटका लगा। 68 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली तक सिमट गई। सहयोगी दलों का हाल भी खास बेहतर नहीं रहा। आजसू केवल 1 सीट पर जीत सकी, जबकि लोजपा (आर) और जेडीयू को भी 1-1 सीट पर संतोष करना पड़ा।
सीटों का बंटवारा: कौन कहां ठहरा?
पार्टी सीटें
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) 34
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 21
कांग्रेस 16
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) 4
सीपीआई (एमएल) 2
आजसू पार्टी 1
लोजपा (आर) 1
जेडीयू 1
जेएलकेएम 1
स्ट्राइक रेट का खेल: कौन हिट, कौन फ्लॉप?
झामुमो: 43 सीटों में से 34 सीटें, यानी 79.06% स्ट्राइक रेट।
कांग्रेस: 30 में से 16 सीटें, यानी 53.33% स्ट्राइक रेट।
आरजेडी: 6 में से 4 सीटें, यानी 66% स्ट्राइक रेट।
भाजपा: 68 में से 21 सीटें, यानी केवल 30.88% स्ट्राइक रेट।
आजसू: 10 में सिर्फ 1 सीट, यानी 10% स्ट्राइक रेट।
आरजेडी बना सरप्राइज पैकेज
आरजेडी के लिए यह चुनाव खास रहा। पिछली बार केवल चतरा सीट पर जीतने वाली आरजेडी ने इस बार 6 सीटों में से 4 पर जीत दर्ज की। इसका 66% स्ट्राइक रेट बताता है कि लालू की पार्टी झारखंड में एक बार फिर मजबूत पकड़ बनाने की ओर बढ़ रही है।
भाजपा का कमजोर प्रदर्शन
2019 में झारखंड की सत्ता गंवाने के बाद भाजपा इस चुनाव में वापसी की उम्मीद कर रही थी, लेकिन 21 सीटों पर सिमटने का मतलब है कि उसकी रणनीति झारखंड में कमजोर साबित हुई। आजसू जैसे सहयोगियों का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा।
सियासी असर: क्या बदलेगा झारखंड का भविष्य?
इस चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने साबित कर दिया कि झारखंड में उनकी पकड़ मजबूत है। दूसरी ओर, भाजपा और उसके सहयोगी दलों को झारखंड की सियासत में दोबारा पांव जमाने के लिए नई रणनीति बनानी होगी।
सवाल है, क्या यह गठबंधन झारखंड की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेगा, या यह जीत केवल चुनावी आँकड़ों तक सीमित रह जाएगी? सियासी पंडितों की नजरें अब गठबंधन के आगे के कदमों पर टिकी हैं।
झारखंड ने नई इबारत लिखी है। अब देखने वाली बात होगी कि इस जीत का असर झारखंड की जमीन पर कितना दिखता है।