
GIRDIH: प्रतिबंधित माओवादी संगठन भाकपा (माओवादी) ने अपनी सभी केंद्रीय, क्षेत्रीय, और जोनल कमेटियों को भंग कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि माओवादी नेतृत्व ने अपने कमांडरों को भूमिगत होने और गुप्त स्थानों पर सुरक्षित रहने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गोरिल्ला आर्मी (PLGA) को छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया गया है और केवल बड़े हमलों के लिए इकट्ठा होने की रणनीति अपनाई गई है।
नई रणनीति: शहरी इलाकों पर फोकस
माओवादियों ने छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना, बिहार और झारखंड में अपने सभी स्तरों की कमेटियों को समाप्त कर दिया है। अब संगठन शहरी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करेगा और निर्णय लेने की प्रक्रिया को विकेंद्रित करने की योजना बना रहा है।
सुरक्षा एजेंसियां सतर्क
इस बदलाव की भनक लगने के बाद सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, बिहार और झारखंड में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। खासतौर पर झारखंड के सारंडा क्षेत्र में, जिसे माओवादियों का पूर्वी क्षेत्रीय मुख्यालय माना जाता है, अतिरिक्त निगरानी लगाई गई है।
क्या माओवादी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं?
हाल के वर्षों में माओवादियों को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ों में बड़े नुकसान झेलने पड़े हैं। छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड जैसे इलाकों में उनकी पकड़ कमजोर पड़ चुकी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि माओवादी अब अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
2 दिसंबर से माओवादी पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गोरिल्ला आर्मी का स्थापना सप्ताह मनाने वाले हैं। लेकिन इससे पहले इतनी बड़ी संख्या में कमेटियों को भंग करना चौंकाने वाला कदम है। नक्सल मामलों के विशेषज्ञ सुरेंद्र कुमार का कहना है, “यह पहली बार है जब माओवादी इतनी व्यापक स्तर पर खुद को पुनर्गठित कर रहे हैं। उनकी ताकत और प्रभाव देशभर में काफी घट चुका है।”
जनता का बदलता नजरिया
माओवादियों की छवि अब “विकास विरोधी” के रूप में देखी जा रही है। जनता उनके विचारधारा और कार्यों को खारिज कर रही है। यह संगठन के लिए एक बड़ा झटका है, जिससे निपटने के लिए उन्हें अपनी रणनीतियों में बड़े बदलाव करने पड़े हैं।