रांची : गोड्डा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने अपने तीखे बयान से सियासी तापमान बढ़ा दिया है। बांग्लादेशी घुसपैठ पर भाजपा का रुख साफ करते हुए उन्होंने एनआरसी लागू करने और 1932 के खतियान के आधार पर लोगों को चिह्नित करने की बात कही है। दुबे का कहना है कि जिनके पास खतियान नहीं होगा, उन्हें बोरे में पैक कर बांग्लादेश भेजा जाएगा।
‘मुद्दों से समझौता नहीं’: दुबे का एलान
डॉ. दुबे का दावा है कि भाजपा की सियासत चुनावी हार-जीत के ऊपर है। उनका कहना है, “घुसपैठ और आदिवासी जनसंख्या घटने का मुद्दा जमीनी है। भाजपा और संघ परिवार इसे सदन से सड़क तक उठाता रहेगा।” विधानसभा चुनाव के बाद संथाल परगना में हुई घटनाओं को दुबे ने बांग्लादेशी घुसपैठ का ‘सबूत’ बताया।
‘संथाल परगना में जनसांख्यिकी संकट’
सांसद ने आदिवासी जनसंख्या घटने के मुद्दे को भी जोरशोर से उठाया। घुसपैठियों के कारण संथाल परगना के जनसांख्यिकी स्वरूप में बदलाव हो रहा है, और यह भाजपा के लिए एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। दुबे ने कहा, “घुसपैठ और आदिवासियों के हक के खिलाफ जो भी ताकतें काम कर रही हैं, उन्हें बेनकाब किया जाएगा।”
‘खतियान 1932’: भाजपा की नई रणनीति?
सांसद ने एनआरसी को 1932 के खतियान से जोड़ते हुए इसे भाजपा की प्रतिबद्धता बताया। यह प्रस्ताव झारखंड में नया राजनीतिक भूचाल ला सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञ इसे भाजपा की “आदिवासी पहचान और बाहरी बनाम स्थानीय” के मुद्दे पर नई रणनीति मान रहे हैं।
क्या यह रणनीति कारगर होगी?
राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा की यह सख्त भाषा चुनावी हार के झटके से उबरने की कोशिश है, या यह झारखंड में पार्टी के ‘कट्टरवाद बनाम समावेशिता’ के एजेंडे का हिस्सा है?
डॉ. दुबे के बयानों में राजनीतिक तल्खी जितनी ज्यादा है, जमीनी क्रियान्वयन उतना ही चुनौतीपूर्ण दिखता है। क्या 1932 के खतियान को एनआरसी का आधार बनाना व्यावहारिक होगा? और क्या घुसपैठ का मुद्दा झारखंड के चुनावी परिदृश्य में भाजपा को फायदा पहुंचाएगा?
झारखंड में भाजपा की सियासी राह मुश्किल दिख रही है। डॉ. निशिकांत दुबे का यह बयान हार से उपजी हताशा है या नई रणनीति का आगाज? जवाब वक्त देगा। लेकिन इतना तय है कि भाजपा झारखंड की राजनीति को ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ और ‘आदिवासी बनाम घुसपैठिया’ के फ्रेम में बांधने की तैयारी में है।