
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रपट ……..
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने मंत्रिपरिषद का विभागीय बंटवारा कर दिया है। ये सिर्फ विभागों का आवंटन नहीं, बल्कि सियासी बिसात पर बिछाई गई पहली चाल है। अहम विभागों को खुद के पास रखकर सोरेन ने अपनी पकड़ मजबूत दिखाई, लेकिन सवर्ण और महिला प्रतिनिधित्व को लेकर सवाल भी खड़े हो गए हैं।
जब मईया सम्मान योजना के तहत महिलाओं को केंद्र में रखकर फैसले हुए थे, तो लगा था कि सोरेन महिलाओं को सत्ता में बड़ी हिस्सेदारी देंगे। लेकिन इस बार उनकी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के कोटे से शपथ लेने वाले छह मंत्रियों में एक भी महिला नहीं हैं। यह वही राज्य है, जहां इस बार विधानसभा में कुल 12 महिला विधायक पहुंची हैं। कांग्रेस ने अपने हिस्से से दो महिलाओं – दीपिका पांडेय सिंह और शिल्पी नेहा तिर्की – को मंत्रिमंडल में जगह दी, जबकि जेएमएम ने इस पहलू को पूरी तरह नजरअंदाज किया।
सवाल यह भी उठता है कि सोरेन ने अपने मंत्रिमंडल से सवर्णों को बाहर क्यों रखा? 2005 से भाजपा के कद्दावर नेता भानु प्रताप शाही को हराकर पहुंचे अनंत प्रताप देव मंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन सवर्णों को किनारे करने की रणनीति ने झारखंड की सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। सोरेन का यह कदम झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ रहा है, जहां बहसें सिर्फ पावर के बंटवारे पर नहीं, बल्कि जातीय समीकरणों पर भी केंद्रित हो गई हैं।
अहम विभागों की बंटवारे की तस्वीर
हेमंत सोरेन ने कार्मिक, गृह, पथ निर्माण और भवन निर्माण जैसे संवेदनशील विभाग खुद के पास रखे।
राधा कृष्ण किशोर को वित्त, वाणिज्य कर और संसदीय कार्य सौंपा गया।
इरफान अंसारी स्वास्थ्य, खाद्य आपूर्ति और आपदा प्रबंधन संभालेंगे।
रामदास सोरेन के जिम्मे स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग आए।
दीपिका पांडेय सिंह को ग्रामीण विकास जैसे अहम क्षेत्रीय विभाग मिले।
शिल्पी नेहा तिर्की को कृषि, पशुपालन और सहकारिता विभाग की जिम्मेदारी दी गई।
राजनीतिक संकेत और संभावनाएं
झारखंड के इस नए समीकरण में सवाल यह है कि सोरेन सरकार विपक्ष के सवालों का कैसे जवाब देगी? क्या महिला और सवर्ण प्रतिनिधित्व का यह अभाव उनकी छवि पर असर डालेगा? या फिर यह उनके जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का नतीजा है?
बहरहाल, नौ नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र इन बहसों को और तेज कर देगा।