
RANCHI: झारखंड में आलू की थाल से बंगाल का स्वाद गायब है। आठ दिनों से पश्चिम बंगाल से आलू की सप्लाई ठप है, और झारखंड के बाजारों में महंगाई की कड़वाहट घुल रही है। झारखंड की मंडियों में उत्तर प्रदेश से आलू की खेप पहुंचने से थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन खुदरा बाजार में दाम अभी भी 50 रुपये प्रति किलो पर अटके हुए हैं।
बंगाल की सियासी रोक और झारखंड की मजबूरी
पश्चिम बंगाल सरकार ने झारखंड सहित अन्य राज्यों को आलू भेजने पर रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह कदम अपनी राज्य की कीमतें काबू में रखने के लिए उठाया है। झारखंड की सीमा पर डीबूडीह चेकपोस्ट पर आलू लदे ट्रकों को रोका जा रहा है और वापस भेजा जा रहा है।
यह प्रतिबंध सिर्फ व्यापारिक नहीं, बल्कि सियासी संदेश भी लगता है। झारखंड की जनता, जो बंगाल के आलू को स्वाद और गुणवत्ता में बेहतर मानती है, अब उत्तर प्रदेश के आलू पर निर्भर है। फर्रुखाबाद से आया आलू राहत जरूर दे रहा है, लेकिन स्वाद और दाम दोनों पर समझौता करना पड़ रहा है।
बाजार में सियासत की आहट
यह रोक झारखंड के बाजारों में उथल-पुथल और उपभोक्ताओं के गुस्से का कारण बन गई है। गिरिडीह के व्यापारी बताते हैं कि बंगाल के आलू की अनुपस्थिति से स्थिति पूरी तरह बिगड़ी तो नहीं, लेकिन कीमतें जरूर 2-5 रुपये तक ऊपर चली गई हैं।
आगे क्या?
सवाल है कि यह प्रतिबंध कब तक जारी रहेगा?
क्या यह महज बंगाल सरकार का कीमतों को काबू में रखने का कदम है?
या झारखंड और बंगाल के बीच बढ़ते सियासी टकराव का संकेत?