
परवेज़ आलम की खास और भावपूर्ण रिपोर्ट……..
एक तरफ़ जहां पूरी दुनिया 1 जनवरी को नए साल के आगमन का उत्सव मना रही है, झारखंड का सरायकेला-खरसावां गांव हर साल इस दिन को शहीद दिवस के रूप में याद करता है। यह वह दिन है जब इस भूमि ने अपने वीर सपूतों और बेटियों की कुर्बानियां देखीं।
आज झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी पत्नी और विधायक कल्पना सोरेन के साथ खरसावां स्थित शहीद स्थल पहुंचे। पारंपरिक तरीकों से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने झारखंड के महान वीरों के संघर्ष को नमन किया। यह परंपरा पिछले मुख्यमंत्रियों – बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास – के समय से चली आ रही है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा,
“आज नए साल के पहले दिन, हम अपने उन वीर पूर्वजों की शहादत से प्रेरणा लेते हैं जिन्होंने जल, जंगल, और ज़मीन की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। यह वीर भूमि “झारखंड “असंख्य बलिदानों से सिंचित है। हर साल हम खरसावां के शहीदों की स्मृति में यहां एकत्र होते हैं, उनकी अमर गाथा को याद करते हैं।”
यहाँ आने से पहले हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के साथ झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार से राजभवन मे जाकर मिले और उन्हें नए साल की बधाई दी ।
क्या है खरसावां की कहानी?
यह दर्दनाक घटना 1 जनवरी 1948 को हुई, जब खरसावां के हाट बाजार में सैकड़ों आदिवासियों को गोलियों का सामना करना पड़ा। उस दिन, जो गुरुवार था, आदिवासी ग्रामीण अपने पारंपरिक बाजार में पहुंचे थे। लेकिन वहां उनकी ज़िंदगी खून से लथपथ खरसावां की मिट्टी पर सिमट गई।
इस जनसंहार की जड़ें आज़ाद भारत के शुरुआती दौर से जुड़ी हैं। 1947 के बाद राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया चल रही थी। 14-15 दिसंबर को अनौपचारिक रूप से खरसावां और सरायकेला रियासतों का विलय ओडिशा राज्य में कर दिया गया। इसका विरोध आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने किया। उन्होंने 1 जनवरी 1948 को एक विशाल जनसभा का आह्वान किया, लेकिन किसी कारणवश वे खुद वहां नहीं पहुंच सके। सभा में हज़ारों की संख्या में लोग शामिल हुए। इसी दौरान पुलिस और भीड़ के बीच संघर्ष हुआ और अचानक गोलियां चलने लगीं। इतिहासकारों का कहना है कि सैकड़ों लोग मारे गए, लेकिन मरने वालों की सही संख्या आज तक किसी को नहीं पता।
शहीद दिवस और गहरे दफन राज।
हर साल 1 जनवरी को खरसावां में शहीदों की याद में मेला लगता है। इसमें झारखंड और ओडिशा के आदिवासी समुदाय बड़ी संख्या में हिस्सा लेते हैं। यह केवल शोक का नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और एकता का प्रतीक है। मुख्यमंत्री और अन्य नेता इस आयोजन को अपनी उपस्थिति से सम्मान देते हैं।
आजाद भारत का सबसे बड़ा गोलीकांड।
खरसावां गोलीकांड भारत का सबसे बड़ा आदिवासी जनसंहार माना जाता है। इसने झारखंड की राजनीति और समाज पर अमिट छाप छोड़ी है। यह दिन सिर्फ़ एक इतिहास नहीं, बल्कि आदिवासी समाज के अदम्य साहस और बलिदान का प्रतीक है।
आज, जब पूरा देश नए साल के उल्लास में डूबा है, झारखंड का यह छोटा सा गांव उस जख्म को याद कर रहा है जिसने यहां की मिट्टी को रक्त से लाल कर दिया। खरसावां के शहीदों को शत-शत नमन।