
परवेज़ आलम की रिपोर्ट …………..
एक बार फिर अजमेर शरीफ से जुड़ी खबर सुर्खियों मे है । इस बार खबर के केंद्र मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है । मोदी जी इस बार भी ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाएंगे। ये उनकी 11वीं चादर होगी।
पीएम मोदी की चादर और संदेश।
हर साल की तरह पीएम मोदी ने इस बार भी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू और बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी को चादर सौंप दी है। शाम 6 बजे की औपचारिकता के बाद यह चादर अजमेर शरीफ भेजी जाएगी। मोदी जी ने एक्स पर तस्वीरें पोस्ट कीं और लिखा:
“मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर पवित्र चादर पेश की। यह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स के दौरान प्रतिष्ठित अजमेर शरीफ दरगाह पर रखी जाएगी।”
यह परंपरा मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू हुई और अब तक जारी है।
उर्स के रंग: बॉलीवुड से लेकर राजनीति तक।
दरगाह में चादर पेश करने वालों की लंबी फेहरिस्त है। इस बार केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार के साथ बॉलीवुड के कुछ सितारे भी अपनी चादरें लेकर पहुंचे। हर कोई देश में शांति और भाईचारे की दुआ मांग रहा है।
विरोध की सियासत।
अब कहानी में ट्विस्ट लाने का काम किया हिंदू सेना ने। संगठन के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दावा किया कि दरगाह दरअसल एक प्राचीन संकट मोचन महादेव मंदिर है। उन्होंने पीएमओ को खत लिखकर अपील की है कि जब तक मामला अदालत में लंबित है, तब तक पीएम की ओर से चादर चढ़ाने का कार्यक्रम रोक दिया जाए।
दरगाह या मंदिर: क्या कहती है अदालत?
गुप्ता जी का दावा है कि चौहान वंश ने इस मंदिर का निर्माण कराया था और उन्होंने कोर्ट में इसके वैज्ञानिक सर्वे की मांग की है। 24 जनवरी को इस मामले की सुनवाई होनी है।
राजनीति का नया अध्याय?
एक तरफ पीएम मोदी का चादर भेजना अल्पसंख्यक समुदाय के साथ संवाद बढ़ाने की कोशिश माना जा रहा है, तो दूसरी तरफ हिंदू सेना इसे धर्म और इतिहास का मामला बता रही है।
आखिर क्या है अजमेर शरीफ की खासियत?
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। पीएम की चादर एक संदेश है कि आस्था और भाईचारा राजनीति से ऊपर है।
अब देखना ये है कि 4 जनवरी को जब किरेन रिजिजू चादर लेकर दरगाह पहुंचेंगे, तब यह मामला सुलह का रास्ता अपनाता है या और बड़ा विवाद बनता है।