
धनबाद से खास रिपोर्ट……..
धनबाद में अखिल भारतीय किन्नर समाज का महाधिवेशन पूरे वैभव और उल्लास के साथ चल रहा है। इस महाधिवेशन के दूसरे दिन एक अनोखी और परंपरागत रस्म निभाई गई—खिचड़ी तौलने की। पीले वस्त्रों में सजी-धजी किन्नरों की टोली ने पांच प्रकार के अनाज से खिचड़ी तौलकर रेशमा मां को समर्पित किया। रस्म के दौरान खुशी के इजहार में रुपयों की बौछार भी की गई, जिसने माहौल को और भी जीवंत कर दिया।
शुभ शुरुआत और भव्य स्वागत।
कार्यक्रम का शुभारंभ प्रदेश अध्यक्ष छमछम देवी के आगमन पर भव्य स्वागत के साथ हुआ। विशेष रूप से सजाए गए मंडप में किन्नरों ने अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवंत किया। किन्नरों के लिए यह रस्म शादी-ब्याह के उत्सव जितनी पवित्र और शुभ मानी जाती है।
देश-विदेश से जुटे हजारों किन्नर।
झारखंड में पहली बार हो रहे इस अधिवेशन में देश-विदेश से करीब 5000 किन्नर धनबाद पहुंचे हैं। सिलीगुड़ी से आई अलाविया नायक ने कहा, “यह सम्मेलन हमारे समाज के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।” गोरखपुर की प्रिया, नेपाल की टीना राय, बोकारो की बबीता नायक सहित कई राज्यों और देशों से आई किन्नर समाज की प्रमुख हस्तियां इस कार्यक्रम का हिस्सा बनीं।
मटकुरिया से शक्ति मंदिर तक शोभायात्रा।
अधिवेशन के उत्साह को और भी बढ़ाने के लिए 7 जनवरी को मटकुरिया से शक्ति मंदिर तक एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी। इस दौरान किन्नर समाज माता रानी के दरबार में 21 किलो का घंटा चढ़ाएगा और यजमानों के परिवारों की खुशहाली के लिए प्रार्थना करेगा।
खास मन्नत से प्रेरित आयोजन।
कोरोना महामारी के कठिन दौर में किन्नर समाज ने मन्नत मांगी थी कि यदि देश इस त्रासदी से उबरता है, तो वे भव्य आयोजन करेंगे। यह अधिवेशन उसी मन्नत को पूरा करने का प्रतीक है। पूजा-पाठ और विशेष चर्चा के साथ इस आयोजन का उद्देश्य किन्नर समाज के यजमानों और उनके परिवारों को आशीर्वाद देना है।
धनबाद की मेहमाननवाजी का जश्न।
विशाल पंडाल और भव्य सजावट ने इस आयोजन को खास बना दिया है। धनबाद शहर और यहां के लोगों की तारीफ करते हुए किन्नरों ने कहा कि इस शहर ने उन्हें अपनाया है। कार्यक्रम स्थल पर ठहरने और खाने-पीने की विशेष व्यवस्था की गई है, जिससे हर प्रतिभागी को घर जैसा महसूस हो।
खुशियों का उत्सव, संस्कृति का सम्मान।
धनबाद में पहली बार हो रहे इस विशाल अधिवेशन ने किन्नर समाज की परंपराओं और संस्कृति को एक नया आयाम दिया है। यह आयोजन केवल रस्मों का उत्सव नहीं, बल्कि समाज में प्रेम, समर्पण और सहिष्णुता का संदेश भी है।