
रांची: सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने झारखंड विधानसभा की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को निर्देश दिया है कि वह अपने किसी निर्वाचित सदस्य को इस चयन कमेटी के लिए नेता प्रतिपक्ष के रूप में नामित करे। यह प्रक्रिया दो सप्ताह में पूरी करने का आदेश दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश: नियुक्ति प्रक्रिया तेज करें.
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने झारखंड में सूचना आयोग की नियुक्ति से संबंधित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार तुरंत इस मामले में कदम उठाए और दो सप्ताह के भीतर नेता प्रतिपक्ष की नामित प्रक्रिया पूरी करे। इसके बाद चयन समिति मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करेगी।
नेता प्रतिपक्ष की गैरमौजूदगी बनी समस्या.
राज्य सरकार ने सुनवाई के दौरान बताया कि झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद फिलहाल खाली है। नेता प्रतिपक्ष चयन समिति का अहम हिस्सा होते हैं। इसी वजह से सूचना आयोग की नियुक्तियों में देरी हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि इस निर्देश का अनुपालन सुनिश्चित करें और इस पर शपथ पत्र दाखिल करें।
2020 से निष्क्रिय है सूचना आयोग.
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि झारखंड में वर्ष 2020 से राज्य सूचना आयोग पूरी तरह से निष्क्रिय है। मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों सहित कई पद खाली हैं, जिसके कारण सूचना के अधिकार से संबंधित हजारों मामले लंबित हैं।
विज्ञापन के बावजूद नियुक्ति क्यों रुकी?
राज्य सरकार के मुताबिक, जून 2024 में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। लेकिन झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद नेता प्रतिपक्ष की घोषणा नहीं हो पाई। इस कारण चयन समिति की बैठक नहीं हो सकी।
पूर्व में क्या हुआ था?
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को निर्देश दिया था कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति चार सप्ताह में पूरी की जाए। अदालत ने मुख्य सचिव से इस मामले में प्रगति रिपोर्ट के लिए शपथ पत्र मांगा था।
सूचना का अधिकार अधर में.
जानकारों का मानना है कि सूचना आयोग में नियुक्तियों में देरी से राज्य में सूचना के अधिकार का उद्देश्य प्रभावित हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाओं को गति देगा, बल्कि जनता के अधिकारों को बहाल करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण साबित होगा।