
गिरिडीह में पारसनाथ पर्वत को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। संथाल समाज ने अपने पारंपरिक देव स्थल, मरांग बुरु, पर कथित अतिक्रमण के खिलाफ आवाज बुलंद की है। उनका कहना है कि यह स्थान उनकी आस्था का केंद्र है, जहां वे सदियों से पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। लेकिन अब जैन समुदाय द्वारा इसे अपने धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित करने की कोशिश की जा रही है, जिससे विवाद की स्थिति बन गई है।
संथाल समाज का विरोध, राष्ट्रपति को सौंपेंगे ज्ञापन
इस मुद्दे को लेकर संथाल समाज ने हाल ही में मरांग बुरु संस्थान गिरिडीह के बैनर तले बैठक की। इसमें विभिन्न जिलों से आए समाज के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 7 मार्च को गिरिडीह के उपायुक्त के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा जाएगा, और 12 मार्च को जोरदार विरोध मार्च निकाला जाएगा।
संथाल समुदाय का आरोप है कि जैन समाज मरांग बुरु देव स्थल पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। यह स्थान संथाल समाज के लिए बेहद पवित्र है, जहां वे वर्षों से पूजा करते आ रहे हैं। वैशाख पूर्णिमा के अवसर पर यहां तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन किया जाता है, जिसमें बलि भी दी जाती है। लेकिन जैन समुदाय इस बलि प्रथा का विरोध कर रहा है, जिससे संथाल समाज के लोगों में आक्रोश है।
धार्मिक मान्यताओं को लेकर टकराव
संथाल समाज के नेता रामलाल मुर्मू ने स्पष्ट कहा कि पारसनाथ पर्वत उनके लिए मरांग बुरु, यानी पहाड़ देवता का स्वरूप है। यह उनकी आस्था का केंद्र है और उनकी परंपराओं का हिस्सा भी। बलि प्रथा उनके धार्मिक रीति-रिवाजों में शामिल है और इसे रोकने की किसी भी कोशिश का वे पुरजोर विरोध करेंगे।
इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई के लिए एक संयोजक मंडल भी बनाया गया है, जिसमें रामलाल मुर्मू, महेश मुर्मू, सुधीर बास्के, दुर्गा चरण मुर्मू, सुरेंद्र टुडू, एतो बास्के, सोनाराम मांझी, रमेश हेंब्रम, रमेश टुडू, अनिल टुडू और शंकर सोरेन जैसे प्रमुख नेता शामिल हैं।
सरकार से हस्तक्षेप की मांग
संथाल समाज के नेताओं का कहना है कि अब वे अपने देव स्थल की रक्षा के लिए पूरी तरह से एकजुट हो चुके हैं। उन्होंने सरकार से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग की है, ताकि उनके धार्मिक अधिकारों की रक्षा की जा सके।
उन्होंने स्पष्ट किया कि वे अपनी परंपराओं और संस्कृति को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। पारसनाथ पर्वत पर अपनी धार्मिक मान्यताओं की रक्षा के लिए उनका संघर्ष जारी रहेगा। अब देखना यह होगा कि सरकार इस विवाद को शांत करने के लिए क्या कदम उठाती है।