
परवेज़ आलम की विशेष रिपोर्ट……..
हेमंत सोरेन का अंदाज़ वही, जो झारखंड की मिट्टी को रास आता है – साफ, सीधा और बिंदास। झारखंड के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार और भाजपा के नेताओं पर तीखा हमला बोलते हुए सवाल दागा है, “कब मिलेगा 1.36 लाख करोड़?” यह केवल एक सवाल नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा का आक्रोश है।
“यह हमारी मेहनत का पैसा है”
सोरेन ने कहा, “हम झारखंडी हवा में बात नहीं करते। ये हमारी मेहनत का पैसा है। हर झारखंडी का हक है और इसे लेकर रहेंगे। भाजपा नेताओं को चाहिए था कि वो हमारी आवाज़ में आवाज़ मिलाते, लेकिन वो तो विरोध में खड़े हो गए। दुखद है, पर लड़ाई हम जीतेंगे।”
झारखंड का चुनावी सुपरहिट मुद्दा.
कोयला रॉयल्टी का 1.36 लाख करोड़ बकाया हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ा सिरदर्द बना। सोरेन ने इसे झारखंड के हर घर तक पहुंचा दिया। उनकी पत्नी कल्पना सोरेन भी इस मोर्चे पर आक्रामक रहीं।
चुनावी माहौल में इस मुद्दे ने सियासी तापमान बढ़ा दिया। अब जब केंद्र सरकार कह रही है कि “झारखंड का कोई बकाया नहीं”, तो राजनीति और गरमा गई है। झामुमो ने साफ कह दिया है कि बकाया नहीं मिला तो “झारखंड से एक ढेला कोयला भी बाहर नहीं जाएगा।”
कानूनी लड़ाई का बिगुल बजा.
सोरेन सरकार ने केंद्र के इंकार के बाद कानूनी रास्ता अख्तियार करने का फैसला लिया है। कैबिनेट ने वरीय अधिवक्ताओं का पैनल तैयार कर लिया है। मामला अब अदालत तक जाएगा।
क्या होगा कोयले का भविष्य?
झारखंड सरकार ने खनन कंपनियों को अल्टीमेटम दे दिया है। भूमि सुधार विभाग ने सभी कंपनियों से जवाब मांगा है। स्थिति साफ नहीं हुई तो खनन और आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।
हेमंत का संदेश: “झारखंड चुप नहीं बैठेगा”
सोरेन के शब्द झारखंडियों की धड़कन बन गए हैं। “हम लड़ेंगे, क्योंकि ये लड़ाई झारखंड के भविष्य की है। ये लड़ाई हमारी मिट्टी के सम्मान की है। ये 1.36 लाख करोड़ का सवाल नहीं, ये झारखंड की आत्मा का सवाल है।”
देखना दिलचस्प होगा कि झारखंड की यह गूंज दिल्ली के गलियारों में कितनी दूर तक सुनाई देती है।