
GIRIDIH:झारखंड में निबंधन नियमावली का पालन न करने पर 1000 से अधिक संस्थाओं का पंजीकरण सस्पेंड कर दिया है। इन संस्थाओं को नोटिस जारी कर पूछा गया है—“क्यों न आपकी मान्यता समाप्त कर दी जाए?”
यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि सरकार को लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि कई संस्थाएं कागजों पर चल रही हैं, वार्षिक रिपोर्ट जमा नहीं कर रहीं, पते बदलने जैसी जानकारियां सरकार से छिपा रही हैं। झारखंड के राजस्व, निबंधन और भूमि सुधार विभाग ने इन आरोपों के आधार पर कड़ा कदम उठाया है।
नोटिस का जवाब नहीं दिया तो खत्म होगी मान्यता.
सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए इन संस्थाओं की गतिविधियों पर रोक लगा दी है। सस्पेंड रजिस्ट्रेशन के दौरान ये संस्थाएं कोई भी चल-अचल संपत्ति ट्रांसफर नहीं कर सकेंगी। उन्हें 31 दिसंबर 2024 तक अंतिम मौका दिया गया है कि वे अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें। ऐसा न करने पर एकतरफा कार्रवाई करते हुए उनकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
नियम तोड़ने के आरोप, दस्तावेजों में गड़बड़ी.
सरकार की समीक्षा में यह सामने आया कि कई संस्थाएं नियमों का पालन नहीं कर रही थीं। इनमें से कई संस्थाएं ऐसी हैं, जिन्होंने रजिस्ट्रेशन के बाद से कभी भी वार्षिक रिपोर्ट नहीं सौंपी। कुछ ने नियमों का उल्लंघन करते हुए अनुदान प्राप्त किया। सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत निबंधित इन संस्थाओं में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं मिली हैं।
सवाल उठते हैं, जवाब नहीं मिलते.
क्या ये संस्थाएं वाकई समाज सेवा के लिए थीं या सिर्फ कागजी दांवपेंच के सहारे सरकारी संसाधनों का दोहन कर रही थीं? और अगर सरकार को इतने वर्षों तक इनकी गतिविधियों की जानकारी नहीं थी, तो क्या यह सरकारी तंत्र की विफलता नहीं है?
संस्थाओं का अस्तित्व और विश्वास का सवाल.
अब सवाल सिर्फ 1000 संस्थाओं की मान्यता का नहीं है। सवाल झारखंड में NGO के अस्तित्व और उनके प्रति जनता के विश्वास का है। क्या ये संस्थाएं अपनी पारदर्शिता साबित कर पाएंगी? या यह अध्याय झारखंड में स्वयंसेवी संस्थाओं की नई परिभाषा गढ़ने का आगाज होगा? सरकार की इस कार्रवाई ने झारखंड के NGO क्षेत्र में भूचाल ला दिया है। 31 दिसंबर 2024 की समयसीमा न सिर्फ इन संस्थाओं के भविष्य का फैसला करेगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि झारखंड में सामाजिक कार्यों की साख कितनी मजबूत है।