झारखंड के बाहर पांव पसारने की तैयारी में JMM, बिहार और बंगाल  की  सीटों पर नजर

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परवेज़ आलम.  

झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) अब राज्य की सीमाओं से बाहर निकल कर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की रणनीति पर काम कर रही है। हाल ही में रांची के खेलगांव में संपन्न हुए 13वें महाधिवेशन में यह स्पष्ट संकेत मिला कि JMM अब राष्ट्रीय स्तर पर संगठन के विस्तार को लेकर गंभीर है। इसका सीधा असर बिहार और पश्चिम बंगाल की राजनीति पर पड़ सकता है ।

बिहार में JMM की दबाव की राजनीति‘?

बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और झामुमो ने यहां कम से कम 12 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और अन्य संभावित सहयोगी दलों के साथ तालमेल के पक्ष में है, लेकिन सीटों के बंटवारे पर अंतिम निर्णय अभी लंबित है।

गौरतलब है कि झारखंड में राजद और JMM के बीच गठबंधन पहले से है और राजद को हेमंत सरकार में प्रतिनिधित्व भी मिला हुआ है। ऐसे में बिहार में गठबंधन की संभावना तो बनी हुई है, लेकिन JMM अब “बराबरी के साझेदार” के रूप में बात करना चाहता है — और यहीं से तेजस्वी यादव की राजनीतिक गणित गड़बड़ा सकती है।

JMM जिन 12 सीटों पर नजर बनाए हुए है, वे सभी झारखंड से सटे सीमावर्ती जिले हैं — जमुई, कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, भागलपुर और बांका जैसे क्षेत्र, जहां आदिवासी और झारखंडी मूल के लोगों की आबादी भी कम नहीं है। यहां पार्टी के संगठन को पहले से ही सक्रिय करने के निर्देश दिए जा चुके हैं।

पश्चिम बंगाल में भी रणनीतिक एंट्री

JMM की रणनीति सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। पार्टी की नजर पश्चिम बंगाल की उन सीमावर्ती आदिवासी बहुल सीटों पर भी है, जहां वह पहले भी उम्मीदवार खड़ा कर चुकी है — जैसे झाड़ग्राम, पुरुलिया, बांकुड़ा, अलीपुरद्वार, पश्चिम वर्धमान और बीरभूम। पिछली बार भले ही JMM ने आखिरी समय में तृणमूल कांग्रेस को समर्थन दे दिया था, JMM तृणमूल कांग्रेस से तालमेल कर चुनाव मे आना चाहती है । पर क्या ममता बनर्जी जेएमएम को मनमाफिक सीटें देंगी इस पर सवाल है । बता दें कि इन जिलों में आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है और JMM इस आधार पर ममता बनर्जी से सीटें मांग सकता है।

भाजपा शासित राज्यों पर भी नजर

JMM की राजनीतिक दृष्टि सिर्फ पड़ोसी गैर-भाजपा राज्यों तक सीमित नहीं है। पार्टी ने ओडिशा और असम जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी अपने संगठन को मजबूत करने की योजना बनाई है। ओडिशा के मयूरभंज, क्योंझर और सुंदरगढ़ जिलों में पार्टी पहले से संगठनात्मक सक्रियता बढ़ा रही है। साथ ही, असम में भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जनसंपर्क अभियान और जनजातीय पहचान की मांग को लेकर आंदोलन शुरू करने की घोषणा की गई है। गौर तलब है कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने झारखंड चुनाव के दौरान भाजपा के लिए सक्रिय प्रचार किया था। ऐसे में JMM का यह कदम भाजपा के लिए भी चुनौती बन सकता है।

राष्ट्रीय पार्टी बनने की ओर झामुमो का कदम

पार्टी के महाधिवेशन में पारित प्रस्ताव में साफ तौर पर कहा गया है कि JMM अब केवल झारखंड की पार्टी नहीं रहेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अपनी भूमिका निभाने की दिशा में बढ़ेगी। हेमंत सोरेन की यह महत्वाकांक्षा न केवल राज्य की सीमाओं को चुनौती देती है, बल्कि पुराने क्षेत्रीय समीकरणों को भी नया रूप देने की संभावना पैदा करती है।

राजनीतिक संकेत क्या हैं?

JMM की इस रणनीति का संदेश साफ है — वह अब ‘सहायक पार्टी’ की भूमिका से आगे बढ़कर खुद को निर्णायक ताकत के रूप में देखना चाहता है। यह तेजस्वी यादव और ममता बनर्जी जैसे सहयोगियों को असहज कर सकता है, जो अब तक इन इलाकों में अपनी मजबूत पकड़ मानते रहे हैं।

आने वाले विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि JMM की यह नई रणनीति उसे कितनी सफलता दिला पाती है, और विपक्षी एकता के नाम पर बनते-बिगड़ते रिश्तों पर इसका क्या असर होता है।

The News Post4u

Perwez Alam is one of the founder of The News Post4U, he brings over 4 decades of Journalism of experience, having worked with Zee News, Sadhna News, News 11, Bureau cheif of Dainik Jargarn, Govt. Accredited Crosspondent of Hindustan daily, Jansatta ect, He loves doing human intrest, political and crime related stories. Contact : 9431395522

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