
परवेज़ आलम कि रिपोर्ट …….
झारखंड की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। गुरुवार को सीएम हेमंत सोरेन चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। नई सरकार के गठन के साथ ही विधानसभा का सत्र प्रारंभ होगा, लेकिन असली दिलचस्पी है विपक्ष की तरफ से कौन होगा नया चेहरा?
भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा
भाजपा, जिसके पास 21 विधायकों की टीम है, इस बार नेता प्रतिपक्ष के चयन को लेकर माथापच्ची में जुटी है। प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी का नाम सबसे आगे है। मरांडी ने इस बार भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की है, लेकिन उनके सामने चंपई सोरेन भी चुनौती बनकर खड़े हैं।
चंपई सोरेन, जो झामुमो छोड़ भाजपा में आए, एक आदिवासी चेहरा हैं। उनकी पहचान सिर्फ विधायक तक सीमित नहीं है, बल्कि वो बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे मुद्दों पर मुखर रहे हैं। भाजपा इस बार हेमंत सोरेन सरकार को उन्हीं के अंदाज में घेरने के लिए आदिवासी नेता को आगे करने की सोच सकती है।
अनुभव बनाम नयापन
दूसरी तरफ, सदन में भाजपा के कई बड़े चेहरे नदारद रहेंगे। अमर कुमार बाउरी, बिरंची नारायण, अनंत ओझा जैसे दिग्गज चुनाव हार चुके हैं। अब सवाल उठता है कि ऐसे में भाजपा अपने नए विधायकों पर कितनी निर्भर हो पाएगी?
सीपी सिंह, जो लंबे समय से चुनाव जीतते आ रहे हैं और सदन में अपनी मुखरता के लिए जाने जाते हैं, सामान्य जाति के मजबूत उम्मीदवार हैं। वहीं, अगर ओबीसी और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान दिया गया, तो नीरा यादव भी इस दौड़ में आ सकती हैं।
विपक्ष की नई रणनीति
भाजपा को अब नए चेहरे और नए तेवर की जरूरत है। सत्येंद्र तिवारी और प्रकाश राम को इस बार सरकार पर हमला बोलने की बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। साथ ही, जमुआ से जीतकर आईं मंजू देवी, जो उच्च शिक्षित हैं, विपक्ष की आवाज को धार देने का काम कर सकती हैं।
आखिरी सवाल:
भाजपा किसे चुनेगी—अनुभव का तजुर्बा, आदिवासी पहचान, या फिर महिला सशक्तिकरण? यह तय करेगा झारखंड की राजनीति का अगला अध्याय।