
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रपट …..
झारखंड की सियासत में भाजपा के लिए हालात मुश्किल होते जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की शानदार जीत के बाद, भाजपा के लिए राज्यसभा चुनाव में भी राहें कठिन नजर आ रही हैं। सिर्फ 21 विधायकों के साथ, भाजपा की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह राज्यसभा में अपने दम पर किसी भी उम्मीदवार को जीत दिला सके।
नंबर गेम में पिछड़ती भाजपा.
राज्यसभा चुनाव में जीतने के लिए 27 विधायकों का समर्थन आवश्यक है। भाजपा के पास वर्तमान में सिर्फ 21 विधायक हैं। एनडीए के घटक दलों—आजसू, जदयू और लोजपा (रामविलास)—को मिलाकर यह संख्या 24 तक पहुंचती है। लेकिन यह आंकड़ा भी जीत के लिए नाकाफी है।
भाजपा की परेशानी यहां खत्म नहीं होती। अगले पांच साल में राज्यसभा की चार सीटें रिक्त होंगी, जिनमें से दो फिलहाल भाजपा के पास हैं। लेकिन मौजूदा हालात में ये दोनों सीटें महागठबंधन की झोली में जाती दिख रही हैं।
झामुमो का बढ़ता प्रभाव.
वर्तमान में राज्यसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा के तीन सदस्य और भाजपा के तीन सदस्य हैं। लेकिन अगर राजनीतिक समीकरण ऐसे ही बने रहे, तो झामुमो-कांग्रेस गठबंधन राज्यसभा में भी अपनी पकड़ मजबूत कर लेगा। यह भाजपा के लिए झारखंड में राजनीतिक हाशिये पर जाने का संकेत हो सकता है।
समाप्त होती उम्मीदें.
भाजपा के वर्तमान राज्यसभा सदस्यों में दीपक प्रकाश और आदित्य साहू का कार्यकाल क्रमश: 2026 और 2028 में समाप्त हो रहा है। अगर भाजपा की स्थिति विधानसभा में ऐसी ही रही, तो 2029 तक झारखंड से राज्यसभा में भाजपा का प्रतिनिधित्व समाप्त हो सकता है।
फिलवक्त , शिबू सोरेन, महुआ माजी और सरफराज अहमद झारखंड मुक्ति मोर्चा से और दीपक प्रकाश, आदित्य साहू एवं प्रदीप वर्मा भाजपा से राज्यसभा में सदस्य हैं।
शिबू सोरेन झामुमो 21 जून 2026 तक
दीपक प्रकाश भाजपा 21 जून 2026 तक
आदित्य साहू भाजपा 7 जुलाई 2028 तक
महुआ माजी झामुमो 7 जुलाई 2028
प्रदीप वर्मा भाजपा 3 मई 2030
सरफराज अहमद झामुमो 3 मई 2030
झारखंड की सियासत का नया अध्याय।
झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन ने झारखंड में सत्ता के साथ-साथ अब राज्यसभा पर भी अपनी नज़रें जमा ली हैं। शिबू सोरेन, महुआ माजी और डॉक्टर सरफराज अहमद जैसे नेता इस स्थिति को मजबूत करने में जुटे हैं। भाजपा के पास अभी समय है, लेकिन सवाल है—क्या वहगठबंधन को चुनौती दे पाएगी?
भाजपा के लिए अलार्म.
झारखंड में भाजपा के लिए यह राजनीतिक अलार्म है। विधानसभा और राज्यसभा में कमजोर होती स्थिति पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े कर रही है। क्या भाजपा इन हालातों से उबरने का रास्ता तलाश पाएगी, या फिर झारखंड की राजनीति में यह गठबंधन उसकी पकड़ को और कमजोर करेगा?