
एक करोड़ का इनामी प्रयाग मांझी उर्फ विवेक दा मारा गया
परवेज़ आलम.
बोकारो/गिरिडीह: झारखंड में चल रहे नक्सल विरोधी अभियान को सोमवार को बड़ी सफलता मिली जब सुरक्षाबलों ने बोकारो के लुगू पहाड़ क्षेत्र में हुई मुठभेड़ में आठ नक्सलियों को मार गिराया। इन मारे गए नक्सलियों में सबसे बड़ा नाम है प्रयाग मांझी उर्फ विवेक दा का — जो भाकपा माओवादी की सेंट्रल कमेटी का सदस्य था और झारखंड-बिहार-छत्तीसगढ़-ओडिशा के नक्सली नेटवर्क का संचालन करता था। इस पर एक करोड़ रुपए का इनाम घोषित था ।
मुठभेड़ रविवार रात से शुरू हुई, जब खुफिया सूत्रों से सुरक्षाबलों को नक्सलियों के जमावड़े की सूचना मिली। इलाके को घेरते हुए तड़के ऑपरेशन शुरू हुआ, और भारी गोलीबारी के बाद सुरक्षाबलों ने आठ नक्सलियों को ढेर कर दिया। फरार नक्सलियों की तलाश में इलाके में अभी भी व्यापक तलाशी अभियान जारी है।
प्रयाग मांझी उर्फ विवेक दा कौन था?
धनबाद जिले के टुंडी प्रखंड के दलबुढ़ा गांव का रहने वाला प्रयाग मांझी, माओवादी सर्किट में “विवेक दा”, “करण दा”, “फुचना” और “नागो मांझी” जैसे नामों से जाना जाता था। उसने बेहद कम उम्र में माओवादी संगठन से जुड़ाव बना लिया था और सालों में वह संगठन का रणनीतिक दिमाग बन गया।
वह न केवल झारखंड, बल्कि बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के नक्सली बेल्ट में सक्रिय था। गिरिडीह के पारसनाथ और बोकारो के लुगू व झुमरा पहाड़ उसके प्रभाव क्षेत्र थे। सिर्फ गिरिडीह में ही उसके खिलाफ 50 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे।
रणनीतिकार, प्रशिक्षक और हथियारों का जानकार
विवेक दा नक्सलियों के लिए सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि सैन्य रणनीतिकार, प्रशिक्षक और हथियारों का जानकार था। उसके दस्ते के पास एके-47, इंसास राइफल और भारी मात्रा में विस्फोटक थे। उसके साथ 50 से ज्यादा प्रशिक्षित नक्सली थे, जिनमें महिला माओवादी भी शामिल थीं।
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, हाल ही में उसे पारसनाथ क्षेत्र की कमान दी गई थी, ताकि वहां पुनः नक्सली गतिविधियों को सक्रिय किया जा सके।
पत्नी भी थी माओवादी नेता, इलाज के दौरान हुई थी मौत.
विवेक की पत्नी जया मांझी भी माओवादी संगठन में महिला विंग की प्रमुख सदस्य थी। 25 लाख की इनामी जया को गिरिडीह पुलिस ने जुलाई 2024 में धनबाद के एक निजी अस्पताल से गिरफ्तार किया था, जहां वह फर्जी नाम से गॉल ब्लैडर कैंसर का इलाज करवा रही थी। इलाज के दौरान 21 सितंबर 2024 को रांची के रिम्स अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी।
माओवादियों को गहरा झटका.
इस मुठभेड़ में मारे गए अन्य नक्सलियों में अरविंद यादव और साहेब राम मांझी भी शामिल थे, जो संगठन के पुराने और प्रभावशाली सदस्य थे। विवेक दा की मौत को सुरक्षाबलों के लिए न सिर्फ सैन्य सफलता, बल्कि मनोवैज्ञानिक बढ़त के रूप में देखा जा रहा है।
झारखंड पुलिस के अधिकारियों के अनुसार, यह पहली बार है जब राज्य में एक करोड़ के इनामी नक्सली को मार गिराया गया है। इससे गिरिडीह-बोकारो क्षेत्र में नक्सली नेटवर्क की कमर टूट गई है।
लुगू और पारसनाथ: नक्सलियों का सुरक्षित अड्डा अब खतरे में.
लुगू पहाड़ और पारसनाथ लंबे समय से नक्सलियों के सेफ जोन माने जाते रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में लगातार ऑपरेशनों के चलते माओवादी इन इलाकों से पीछे हटे थे। लेकिन हालिया मुठभेड़ से संकेत मिलता है कि नक्सली दोबारा इन्हीं क्षेत्रों को पुनर्जीवित करना चाहते थे।
पुलिस ने संकेत दिए हैं कि इन इलाकों में सघन अभियान जारी रहेगा ताकि बचे-खुचे माओवादी पूरी तरह खत्म किए जा सकें।
नक्सलवाद के अंत की ओर एक कदम.
प्रयाग मांझी की मौत को माओवादी संगठन के लिए बहुत बड़ा धक्का माना जा रहा है। उसकी रणनीतिक पकड़, राज्य के कई जिलों में असर और नेटवर्क को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह झारखंड के नक्सल इतिहास में एक निर्णायक मोड़ है।
पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां अब बचे हुए माओवादियों की गिरफ्तारी और संगठन को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने के लिए ज़मीनी स्तर पर ऑपरेशन को और तेज करने की तैयारी में हैं।