
परवेज़ आलम की खास रिपोर्ट………….
झारखंड में पेसा कानून (PESA Act) को लेकर बड़ी हलचल मची है। खबरें आ रही हैं कि पेसा नियमावली अब कैबिनेट में भेजे जाने की तैयारी में है। राज्य के महाधिवक्ता से सलाह लेकर इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है।
क्या कहती हैं निदेशक निशा उरांव?
निशा उरांव का कहना है कि, “2017 में पेसा कानून पर उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों ने सरकार के पक्ष में फैसला सुना दिया था। इसके बाद इसे लागू करने की कवायद शुरू हुई, लेकिन कुछ लोगों ने जानबूझकर जनता को भटकाने का काम किया। इसी वजह से यह प्रक्रिया अटक गई।” उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालत ने पंचायती राज अधिनियम को पेसा क्षेत्र के अनुकूल माना है और इसे 1996 के पेसा कानून के तहत सही ठहराया है। अब राज्य अधिनियम के तहत पेसा नियमावली का प्रस्ताव तैयार है। उन्होंने बताया कि देश के 10 राज्यों ने भी यही प्रक्रिया अपनाई है, जो कानूनी रूप से सही मानी जाती है।
हाईकोर्ट का अल्टीमेटम: 2 महीने में लागू करें कानून!
हाईकोर्ट ने पेसा कानून को जल्द लागू करने का आदेश दिया है। जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण राय की बेंच ने 29 जुलाई को ही यह फैसला सुनाया था। लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया गया, जिसके बाद राज्य सरकार को फिर से अल्टीमेटम दिया गया है।
क्या है विवाद?
पेसा कानून को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में तीन याचिकाएं दायर की गई हैं। हालांकि अदालत ने साफ कहा है कि यह कानून सही प्रक्रिया के तहत है और इसे जल्द लागू करना अनिवार्य है।
पेसा कानून का क्या मतलब है?
पेसा यानी पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996। इसका मकसद आदिवासी इलाकों में स्वशासन को बढ़ावा देना और संसाधनों पर उनकी अधिकारिता सुनिश्चित करना है।
कब तक लागू होगा?
सूत्रों की मानें तो अगले दो महीने के भीतर पेसा कानून झारखंड में लागू हो सकता है। लेकिन क्या राज्य सरकार समय पर इस आदेश का पालन कर पाएगी या फिर एक बार फिर प्रक्रिया फाइलों में अटक जाएगी?