
धनबाद मे स्थापना दिवस आज
परवेज़ आलम की खास रिपोर्ट ………..
झारखंड की राजनीति में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का नाम सिर्फ एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि संघर्ष और सफलता की कहानी है। 4 फरवरी 1972 को धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में हुई एक ऐतिहासिक रैली के दौरान इस पार्टी की नींव रखी गई थी। 53 साल बाद, झामुमो न केवल सत्ता का केंद्र बना हुआ है, बल्कि झारखंड की पहचान और राजनीतिक धारा को भी निर्धारित कर रहा है।
34 वर्षों से शिबू सोरेन के हाथों में झामुमो की बागडोर।
पार्टी के संस्थापक शिबू सोरेन पिछले 34 वर्षों से झामुमो के अध्यक्ष हैं। यह भारतीय राजनीति में एक दुर्लभ घटना है कि एक ही व्यक्ति इतने लंबे समय तक किसी पार्टी की कमान संभाले रहे। 2021 में हुए अधिवेशन में उन्हें 10वीं बार अध्यक्ष और हेमंत सोरेन को तीसरी बार कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया।
शिबू सोरेन: उम्र भले बढ़ी, पर प्रभाव बरकरार।
हालांकि, बढ़ती उम्र के कारण शिबू सोरेन की सक्रियता कम हो गई है, लेकिन वह आज भी झारखंड की राजनीति के अहम किरदार हैं। जब तक वह हैं, झामुमो की अध्यक्षता को लेकर कोई दूसरी चर्चा नहीं हो सकती। उनके बाद उनके बेटे हेमंत सोरेन पार्टी के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं और बीते एक दशक से कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं।
पांच बार सत्ता में झामुमो, हर बार सोरेन परिवार का दबदबा।
15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य बनने के बाद, झामुमो अब तक पांच बार सत्ता में आ चुका है। दिलचस्प बात यह है कि हर बार मुख्यमंत्री सोरेन परिवार से ही बना।
- शिबू सोरेन ने 2005, 2008 और 2009 में मुख्यमंत्री पद संभाला।
- हेमंत सोरेन ने 2013-14 में पहली बार और फिर 2019 से लगातार सत्ता में बने हुए हैं।
हालांकि, झामुमो की चार सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं। कुछ महज़ कुछ दिन टिकीं, कुछ 6 महीने तो कुछ 14 महीने चलीं।
2019 और 2024 में झामुमो की ऐतिहासिक जीत।
2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन की अगुवाई में झामुमो ने 81 में से 30 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस और आरजेडी के साथ सरकार बनाई।
2024 में झामुमो ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
- पार्टी ने 34 सीटों पर जीत दर्ज की।
- गठबंधन ने 81 में से 56 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी की।
संघर्ष के दिन: जब शिबू सोरेन को अंडरग्राउंड होना पड़ा।
शिबू सोरेन जब 12 साल के थे, तब सूदखोरों ने उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या कर दी। इसके बाद उन्होंने महाजनों और शोषण के खिलाफ संघर्ष शुरू किया, जिसने कई बार हिंसक रूप ले लिया। वह कई बार अंडरग्राउंड भी रहे। धनबाद के जिलाधिकारी के.बी. सक्सेना और कांग्रेस नेता ज्ञानरंजन की पहल से उन्होंने आत्मसमर्पण किया और दो महीने जेल में बिताने के बाद बाहर आए।
‘सोनोत संताल’ और ‘शिवाजी समाज’ के विलय से बनी झामुमो।
1972 में सोनोत संताल और विनोद बिहारी महतो के नेतृत्व वाले शिवाजी समाज के विलय से झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन हुआ। इसमें ट्रेड यूनियन लीडर ए.के. राय की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
- विनोद बिहारी महतो पार्टी के पहले अध्यक्ष बने।
- शिबू सोरेन पहले महासचिव बने।
1980 में पहली बार सांसद बने शिबू सोरेन।
1980 में शिबू सोरेन दुमका से सांसद चुने गए। इसी साल, बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने संथाल परगना की 18 में से 9 सीटें जीतकर पहली बार अपने मजबूत राजनीतिक वजूद का एहसास कराया।
1991 में विनोद बिहारी महतो के निधन के बाद शिबू सोरेन पार्टी के अध्यक्ष बने और तब से पार्टी की कमान उन्हीं के हाथों में है।
हेमंत सोरेन की नई लीडरशिप।
2015 में जमशेदपुर में हुए अधिवेशन में हेमंत सोरेन को पहली बार कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद झामुमो एक नए दौर में प्रवेश कर गया और आज वह झारखंड की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक ताकत बना हुआ है।
संघर्ष से सत्ता तक का सफर जारी…
झामुमो की यह यात्रा सिर्फ सत्ता प्राप्ति तक सीमित नहीं है। यह झारखंड की आत्मा से जुड़ा आंदोलन है, जिसने झारखंड के लोगों को पहचान, हक और नेतृत्व देने का काम किया है। अब सवाल यह है कि पार्टी आने वाले वर्षों में अपनी सत्ता और सिद्धांतों के बीच कैसे संतुलन बनाए रखती है,यह वक्त बताएगा।