
HAZARIBAGH :जब झारखंड में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ, तो हर पार्टी अपने-अपने समीकरण साधने में जुटी थी। आजसू पार्टी भी पूरे दमखम से अपने वोट बैंक को साधने की कोशिशों में लगी थी। लेकिन इसी बीच एक चिट्ठी ने चुनावी माहौल को गर्म कर दिया। ये चिट्ठी कहां से आई, किसने लिखी, कोई नहीं जानता। लेकिन इसके असर से झारखंड की सियासत में भूचाल आ गया।
इस चिट्ठी में कुरमी समाज के भीतर सालों से सुलग रही नाराजगी को शब्द दिए गए थे। हेडलाइन थी— “आखिर कुरमी समाज आजसू को वोट क्यों दे?” और जब नतीजे आए, तो साफ हो गया कि ये चिट्ठी आजसू पार्टी के लिए कितनी घातक साबित हुई। पार्टी महज एक सीट पर सिमट गई, और कुरमी समाज ने अपना नया नेता जयराम महतो को चुन लिया।
क्यों नाराज हुआ कुरमी समाज?
चिट्ठी ने आजसू पर सीधे-सीधे आरोप लगाए।
- निर्मल महतो के परिवार का अपमान: शहीद निर्मल महतो के छोटे भाई सुधीर महतो की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी सबिता महतो को चुनाव हराने के लिए आजसू ने पूरी ताकत झोंक दी। चिट्ठी का दावा है कि अगर आजसू वास्तव में निर्मल महतो का सम्मान करती, तो उनकी विधवा के खिलाफ उम्मीदवार ही नहीं उतारती।
- दुख में दूर, सियासत में पास: जब शहीद सुनील महतो की बेटी का आकस्मिक निधन हुआ, तो आजसू का कोई नेता उनसे मिलने तक नहीं गया। लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनकी इस मुश्किल घड़ी में साथ दिया।
कुरमी नेताओं के खिलाफ साजिश के आरोप
इस चिट्ठी में आजसू पर अपने ही समाज के नेताओं को खत्म करने का आरोप लगाया गया।
- जगरनाथ महतो के निधन के बाद डुमरी उपचुनाव में आजसू ने पूरा जोर लगाया, लेकिन जयराम महतो ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।
- दामोदर महतो की पत्नी यशोदा देवी का टिकट काटने की कोशिश की गई, ताकि दुर्योधन महतो को मौका दिया जा सके।
- तीन कुरमी विधायकों—योगेंद्र महतो, अमित महतो, और ममता देवी—को झूठे मामलों में जेल भिजवाने का आरोप लगाया गया। खासतौर पर ममता देवी को अपने दूधमुंहे बच्चे को छोड़कर जेल जाना पड़ा।
आरोप: आजसू पूंजीपतियों की पार्टी बन गई है
चिट्ठी ने सुदेश महतो और चंद्रप्रकाश चौधरी पर भी सीधा निशाना साधा।
- सुदेश महतो पर आरोप है कि अपने भाई को डीएसपी बनवाने के लिए उन्होंने JPSC में पैरवी की, लेकिन गरीब कुरमी युवाओं के लिए कुछ नहीं किया।
- आजसू को एक ऐसी पार्टी बताया गया, जो अब पूंजीपतियों और गैर-झारखंडी लोगों की समर्थक बन चुकी है।
जयराम महतो की नई राजनीति
चिट्ठी का सबसे बड़ा निशाना ये था कि जब कुरमी समाज का एक नया युवा नेता, जयराम महतो, उभर रहा है, तो आजसू उसे कुचलने की साजिश कर रही है। पार्टी के सोशल मीडिया वर्कर्स उस पर व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं। लेकिन जनता ने अपना फैसला सुना दिया।
क्या है इस हार का संदेश?
आजसू के लिए ये नतीजे महज हार नहीं हैं, बल्कि कुरमी समाज की एक चेतावनी हैं। चिट्ठी ने उस दर्द को आवाज दी, जिसे समाज ने सालों से महसूस किया। अब सवाल ये है कि झारखंड की राजनीति इस नए समीकरण को कैसे संभालती है।
तो क्या आजसू अपनी रणनीति पर फिर से विचार करेगी? क्या जयराम महतो के उभार के बाद कुरमी राजनीति का नया अध्याय शुरू हो चुका है? झारखंड के सियासी अखाड़े में ये सवाल अब गूंज रहे हैं।