
गिरिडीह: खरगडीहा स्थित लंगटा बाबा के समाधि स्थल पर इस बार भी आस्था का सैलाब उमड़ा। पौष पूर्णिमा के मौके पर हर साल की तरह इस वर्ष भी समाधि पर्व मनाया गया, जिसमें श्रद्धालुओं की भीड़ ने भाईचारे और समरसता की मिसाल पेश की। अहले सुबह तीन बजे जमुआ थाना प्रभारी मणिकांत कुमार ने बाबा की समाधि पर पहली चादरपोशी कर आयोजन का शुभारंभ किया। इसके बाद आम श्रद्धालुओं ने चादरपोशी शुरू की, जो दिनभर जारी रही।
लंगटा बाबा: पीड़ित मानवता के उद्धारक संत
कहा जाता है कि 1870 में देवघर जाते समय नागा साधुओं का एक दल खरगडीहा के पुलिस थाना परिसर में रुका। सभी साधु अगले दिन रवाना हो गए, लेकिन एक साधु नग्न अवस्था में धूनी रमाए वहीं बैठे रहे। यही साधु बाद में लंगटा बाबा के रूप में विख्यात हुए। 1910 की पौष पूर्णिमा को बाबा ने महासमाधि ले ली। बाबा के जीवन में अनेक चमत्कार और लीलाएं जुड़ी हैं। उन्होंने न केवल लोगों की समस्याएं दूर कीं, बल्कि अमीर-गरीब, जाति-धर्म से परे सभी को समान रूप से सम्मान दिया।
भाईचारे की मिसाल
लंगटा बाबा के समाधि पर्व पर हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की बराबर भागीदारी होती है। परंपरा के अनुसार, सुबह हिंदू धर्मावलंबियों ने चादरपोशी की और दोपहर बाद मुस्लिम समुदाय ने अपनी श्रद्धा अर्पित की। इस आयोजन में झारखंड, बिहार सहित अन्य प्रदेशों से हजारों श्रद्धालु पहुंचे। बाबा के प्रति आस्था का आलम ऐसा है कि उनकी समाधि पर सिर झुकाने वालों में हर वर्ग और धर्म के लोग शामिल होते हैं।
विशेष व्यवस्थाएं और चुनौतियां
मेले में भक्तों की सुविधा के लिए विशेष प्रबंध किए गए थे, लेकिन भारी भीड़ के कारण व्यवस्थाएं नाकाफी रहीं। समाधिस्थल तक पहुंचने के लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा। सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस बल तैनात किया गया था, और वरिष्ठ अधिकारियों ने भी समाधिस्थल पर श्रद्धा निवेदित की।
समाज को जोड़ने का संदेश
लंगटा बाबा का समाधि पर्व न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। उनकी शिक्षाएं और साधना आज भी लोगों को प्रेम, समानता और भाईचारे का संदेश देती हैं। श्रद्धालुओं के अनुसार, बाबा के दरबार में मन्नत मांगने से हर समस्या का समाधान होता है।
लंगटा बाबा का समाधि स्थल हर वर्ष यह याद दिलाता है कि सच्ची आस्था और इंसानियत की कोई सीमा नहीं होती। यही वजह है कि बाबा के प्रति आस्था अडिग है और उनका समाधि पर्व एकता और मानवता का जश्न बन चुका है।