
गिरिडीह : झारखंड की मिट्टी में बसे एक ऐसे सांस्कृतिक विरासत की बात बताते हैं , जो सिर्फ पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक पूरे समाज की पहचान है। संथाल समाज की आत्मा, उनकी परंपरा, और उनकी जड़ों का प्रतीक—मांझी थान और जाहेर थान। और इस चर्चा के केंद्र में हैं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी।”
आज बाबूलाल मरांडी अपने गांव कोदईबांक में पहुंचे। गांव के मुहाने पर मांझीथान के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। यह महज एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि उस समाज के प्रति एक संवेदनशील दृष्टिकोण था, जो अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए संघर्षरत है।
“बाबूलाल मरांडी ने कहा,। अगर ये समाप्त हो गए, तो समझिए, हमारी पहचान भी समाप्त हो जाएगी।'”
संथाल समाज की परंपरा में मांझी थान और जाहेर थान का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं है। यह उनके इतिहास का जीवंत दस्तावेज है। मांझी थान उस धरती से जुड़ाव का प्रतीक है, जहां यह समाज अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ बसता है।
“बाबूलाल मरांडी ने स्पष्ट कहा, ‘हम तभी तक संथाल हैं, जब तक जाहेर थान और मांझी थान की पूजा करते हैं। यह हमारी पहचान है, हमारी जड़ें हैं।'”
बाबूलाल मरांडी ने अपने इस कदम से एक बड़ी बात कही। यह केवल आस्था का सवाल नहीं, बल्कि एक समुदाय की सांस्कृतिक आत्मा को बचाने की पहल है।