
परवेज़ आलम की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट ………
केंद्र की मोदी सरकार कल यानि मंगलवार को लोकसभा में वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पेश कर सकती है। इसको लेकर बीजेपी ने अपने सांसदों के लिए तीन-लाइन का व्हिप जारी कर दिया है। यह व्हिप कल यानी मंगलवार के लिए जारी हुआ है, और इसका सीधा मतलब है कि बिल को लेकर सरकार पूरी तैयारी में है।
जेपीसी गठन की चर्चा।
बिल पेश होने के बाद इसे संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की संभावना जताई जा रही है। यही नहीं, कल ही इस समिति का गठन भी हो सकता है, जिसमें बीजेपी, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सदस्य शामिल होंगे।
सरकार का पक्ष।
सरकार का कहना है कि एनडीए के सभी घटक दल वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में हैं। विपक्ष इसे लेकर विरोध कर रहा है, लेकिन सरकार इसे “राजनीतिक विरोध” मान रही है, न कि तार्किक।
क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन?
अब बात करते हैं इस बिल की मूल भावना की।
वन नेशन, वन इलेक्शन का मतलब है कि लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराए जाएं। यह विचार नया नहीं है। 1952 से लेकर 1967 तक भारत में सभी चुनाव एक साथ हुए थे।
लेकिन, 1967 के बाद राज्यों में सरकारें गिरने और मध्यावधि चुनाव होने की वजह से यह व्यवस्था टूट गई। अब हर साल देश के अलग-अलग हिस्सों में चुनाव होते रहते हैं, जिससे न केवल समय और पैसा बर्बाद होता है, बल्कि विकास कार्यों पर भी असर पड़ता है।
सरकार के तर्क:
लागत में कमी: अलग-अलग चुनाव कराने में सरकारी खजाने से बड़ी राशि खर्च होती है।
प्रशासनिक दक्षता: एक साथ चुनाव से प्रशासनिक व्यवस्था पर दबाव कम होगा।
विकास में गति: बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य रुकते हैं।
विपक्ष का तर्क:
संविधान की भावना पर सवाल: विपक्ष का कहना है कि संघीय ढांचे में राज्यों के अधिकार अलग-अलग चुनाव कराने की स्वतंत्रता में निहित हैं।
व्यावहारिकता की चुनौती: इतने बड़े देश में एक साथ चुनाव कराना कितना व्यवहारिक है, यह बड़ा सवाल है।
कल क्यों अहम है?
सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने सभी सांसदों को बिल की कॉपी पहले ही वितरित कर दी थी। हालांकि, शुक्रवार को इसे लोकसभा के एजेंडा से हटा दिया गया था। लेकिन अब, तीन-लाइन का व्हिप जारी होने के बाद, यह तय माना जा रहा है कि बिल कल पेश होगा।
बड़ा सवाल:
क्या यह बिल पास हो पाएगा?
क्या भारत चुनावी बदलाव के इस ऐतिहासिक पल को देखेगा?
क्या विपक्ष इसे सिर्फ “राजनीतिक विरोध” के तौर पर देख रहा है, या वाकई इसमें संविधानिक और व्यावहारिक चुनौतियां हैं?
आपकी इस पर क्या राय है?
क्या वन नेशन, वन इलेक्शन वाकई लोकतंत्र को मजबूत करेगा या यह सिर्फ एक राजनीतिक कदम है? अपनी राय The News Post4u पर जरूर दे ।