प्रदर्शन के पीछे की कहानी।
13 दिसंबर 2024 को हुई 70वीं बीपीएससी प्रीलिम्स परीक्षा से उपजा विवाद अब सड़कों पर उतर आया है। बापू केंद्र पर पेपर देरी से मिलने के आरोपों ने अभ्यर्थियों को आक्रोशित कर दिया। बीपीएससी ने परीक्षा को आंशिक रूप से रद्द करते हुए 4 जनवरी को फिर से परीक्षा कराने का आदेश दिया। लेकिन छात्रों की मांग है कि परीक्षा को पूरी तरह रद्द किया जाए।
गांधी मैदान बना ‘संघर्ष का मंच’।
रविवार को अभ्यर्थियों ने गांधी मैदान में प्रदर्शन किया। इस मार्च ने प्रशासन के पसीने छुड़ा दिए। बिना अनुमति प्रदर्शन करने पर प्रशासन ने सख्ती दिखाई। बैरिकेडिंग तोड़कर अभ्यर्थी मैदान में घुस गए, जिससे स्थिति बेकाबू हो गई। गांधी मैदान में प्रदर्शन के खिलाफ प्रशांत किशोर समेत 700 लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है। बीपीएससी अभ्यर्थियों का प्रदर्शन को लेकर पटना डीएम डॉ चंद्रशेखर सिंह ने मीडिया को बताया कि “गांधी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी गयी थी। इसके बावजूद अभ्यर्थी गांधी मैदान में जमाहुए थे।”
लाठीचार्ज और नाराजगी।
प्रदर्शनकारियों की भीड़ जब सीएम हाउस की ओर बढ़ी, तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया। लेकिन बवाल तब और बढ़ गया जब पुलिस ने माइक पर ऐलान किया, “आपके नेता (प्रशांत किशोर) लौट चुके हैं। अब आप भी लौट जाइए।” प्रदर्शनकारी उग्र हो गए और प्रशांत किशोर पर राजनीतिक लाभ के लिए छात्रों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।
प्रशांत किशोर के पांच सवाल
प्रशांत किशोर ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार के खिलाफ पांच मांगें रखीं:
- बीपीएससी पीटी परीक्षा को रद्द कर फिर से आयोजित किया जाए।
- अनियमितताओं की न्यायिक जांच हो।
- छात्रों पर दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएं।
- लाठीचार्ज के आदेश देने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
- आत्महत्या करने वाले छात्र सोनू यादव के परिजनों को न्याय मिले।
उन्होंने कहा, “अगर सरकार बात नहीं मानेगी, तो 2 जनवरी से अनिश्चितकालीन अनशन शुरू करूंगा।”
सियासी बयानबाजी और सवाल।
प्रदर्शन के बीच प्रशांत किशोर का छात्रों के साथ मुलाकात का वीडियो वायरल हुआ। जहां पप्पू यादव ने उन पर राजनीति करने का आरोप लगाया, वहीं तेजस्वी यादव ने कहा, “प्रशांत किशोर छात्रों के आंदोलन को भटका रहे हैं।”
छात्रों की परीक्षा या राजनीति की परीक्षा?
पटना की सड़कों पर निकला यह मार्च केवल छात्रों के भविष्य का सवाल नहीं है। यह उस राजनीतिक सर्कस का हिस्सा बनता जा रहा है, जहां मुद्दे गुम हो जाते हैं और मंच नेताओं का हो जाता है।
क्या सरकार और प्रशासन छात्रों की आवाज सुन पाएंगे? या यह प्रदर्शन भी सिर्फ राजनीति की गूंज बनकर रह जाएगा?