रिपोर्ट: परवेज़ आलम…….
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को वक्फ संशोधन विधेयक पर आड़े हाथों लिया है। विधानसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान ममता बनर्जी ने इसे न केवल संघीय व्यवस्था के खिलाफ बताया, बल्कि धर्मनिरपेक्षता पर सीधा प्रहार करार दिया। उनका आरोप साफ था—“यह विधेयक एक खास समुदाय के अधिकारों को कमजोर करने का षड्यंत्र है। मुसलमानों के वक्फ संपत्ति और धार्मिक अधिकारों को इस तरह से खत्म नहीं होने देंगे।”
‘हमसे चर्चा क्यों नहीं हुई?’ ममता का सवाल
ममता बनर्जी ने विधेयक को लेकर केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा,“यह विधेयक वक्फ संपत्ति को नष्ट कर देगा। इस पर हमसे कोई चर्चा नहीं हुई। केंद्र सरकार की यह नीति न केवल धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, बल्कि संघीय ढांचे को भी कमजोर करती है। अगर किसी धर्म पर हमला होता है, तो मैं हमेशा इसके खिलाफ आवाज उठाऊंगी।”
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि विधेयक को जिस तरह से लाया गया है, वह केंद्र के रवैये को उजागर करता है। “संविधान हमें संघीय ढांचे में परस्पर विश्वास और सलाह-मशविरा करने की बात सिखाता है, लेकिन यहां तो तानाशाही रवैया दिख रहा है,” उन्होंने कहा।
विपक्ष एकजुट, भाजपा का पलटवार
ममता बनर्जी के इस आक्रामक रुख के बाद विपक्षी दलों ने भी विधेयक की कड़ी आलोचना की। कई नेताओं ने इसे मुसलमानों के अधिकारों का हनन बताया। वहीं, भाजपा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि विधेयक का उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है। भाजपा नेताओं का दावा था कि यह विधेयक धार्मिक अधिकारों को नुकसान पहुंचाने के बजाय व्यवस्थागत सुधार करेगा।
बांग्लादेश मुद्दे पर ममता का केंद्र को समर्थन
बांग्लादेश में धार्मिक तनाव के मुद्दे पर ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को समर्थन देने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा,
“हम किसी भी धर्म को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते। मैंने इस्कॉन से इस विषय पर चर्चा की है। यह दूसरे देश का मामला है और केंद्र सरकार को इस पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए। हम इस मसले पर केंद्र के साथ खड़े हैं।”
ममता बनर्जी का यह बयान बताता है कि राज्य और केंद्र के बीच मुद्दों पर तालमेल की जरूरत है, लेकिन वक्फ संशोधन विधेयक पर उनका कड़ा विरोध केंद्र-राज्य संबंधों में तल्खी को भी उजागर करता है।
समिति का कार्यकाल बढ़ा, सियासी हलचल तेज
वक्फ संशोधन विधेयक पर गठित संसदीय समिति का कार्यकाल बजट सत्र 2025 तक बढ़ा दिया गया है। समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने बैठक के बाद कहा,
“सभी सदस्य सहमत हैं कि विधेयक का विस्तृत अध्ययन जरूरी है। इसलिए कार्यकाल बढ़ाने का फैसला सर्वसम्मति से लिया गया।”
यह फैसला इस बात का संकेत है कि वक्फ संशोधन विधेयक पर सियासी जंग अभी लंबी चलने वाली है। विपक्ष जहां इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला बता रहा है, वहीं सरकार इसे पारदर्शिता का कदम मान रही है।
अंतिम सवाल: क्या संघीय ढांचा सच में खतरे में है?
ममता बनर्जी ने संघीय ढांचे और धर्मनिरपेक्षता पर खतरे की जो बात कही, वह सवालों के घेरे में है। क्या वक्फ संशोधन विधेयक से वाकई मुसलमानों के अधिकारों को नुकसान होगा, या यह सुधारवादी कदम है? यह बहस न केवल संसद के भीतर, बल्कि देश के हर कोने में गूंज रही है। लेकिन एक बात तय है—ममता बनर्जी ने इस मुद्दे को जिस सख्त अंदाज में उठाया है, वह इसे सियासी और सामाजिक रूप से और बड़ा बनाएगा। क्या यह केंद्र बनाम राज्य का नया अध्याय है, या धर्मनिरपेक्षता की बहस का अगला पड़ाव? आने वाला वक्त ही बताएगा।