मां-बेटे की झोपड़ी में लगी आग, मौत बनकर आई ठंड की रात.
गुरुवार देर रात हुई इस घटना में नुनिया देवी और उनका 12 वर्षीय बेटा बाबूचंद मुर्मू खलिहान मे बनाईगयी पुवाल की अस्थायी झोपड़ी में सो रहे थे। झोपड़ी के पास अलाव जलाया गया था ताकि ठंड से राहत मिल सके। लेकिन अलाव से उठी चिंगारी ने झोपड़ी को अपनी चपेट में ले लिया। आग इतनी तेजी से फैली कि मां-बेटे को बाहर निकलने का मौका तक नहीं मिला। झोपड़ी में फंसे इन दोनों की दर्दनाक मौत हो गई।
घटना स्थल पर पहुंची पुलिस, शव के अवशेष किए बरामद.
डुमरी थाने की पुलिस ने घटना की जानकारी मिलते ही मौके पर पहुंचकर आग बुझाई। शवों के अवशेष बरामद कर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजे गए हैं। थाना प्रभारी जगन्नाथ पान ने बताया कि ग्रामीणों ने इसे एक हादसा बताया है और पुलिस मामले की जांच कर रही है।
विधायक ने प्रशासन से की मुआवजे की मांग.
विधायक जयराम महतो ने इस हृदयविदारक घटना पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए जिला प्रशासन से मृतकों के परिजनों को अनुग्रह राशि देने और आग से हुए नुकसान का उचित मुआवजा सुनिश्चित करने की मांग की। उन्होंने आश्वासन दिया कि पीड़ित परिवार को हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
झारखंड में बढ़ती आगजनी की घटनाएं.
ठंड के मौसम में झारखंड के धान के खलिहानों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। हाल ही में गोड्डा और हजारीबाग में भी ऐसी घटनाओं ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया। यह घटना सरकार और प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि ठंड से जुड़े खतरों से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
सवाल उठते हैं: कब होगा समाधान?
जिलिमटांड़ की यह घटना सिर्फ एक दर्दनाक हादसा नहीं, बल्कि गरीब परिवारों के संघर्षों की कहानी भी है। ठंड से बचने के लिए अलाव जलाना उनकी मजबूरी थी, लेकिन यही मजबूरी उनकी मौत का कारण बन गई। क्या प्रशासन ऐसे हादसों को रोकने के लिए कोई ठोस योजना बना पाएगा, या यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा?