
परवेज़ आलम की रिपोर्ट …….
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जो 28 नवंबर को चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं, अपने पैतृक गांव नेमरा पहुंचे। नेमरा, जो न सिर्फ उनके बचपन का गवाह है, बल्कि उनकी जड़ों और संघर्ष की कहानियों को भी समेटे हुए है। पहाड़ की तलहटी में बसे इस गांव में हेमंत सोरेन के कदम पड़ते ही पुरानी यादें जैसे ताजा हो उठीं।
गांव का बदलता चेहरा, पर यादों का वही अक्स
नेमरा में स्थित उनका खपरैल मकान, अब आंशिक रूप से दो मंजिला हो गया है। आंगन में लगा कल्पतरु का वृक्ष पहले से अधिक घना हो चुका है, लेकिन खेतों की पगडंडियां और गांव के गलियारे हेमंत सोरेन के लिए वही बचपन की कहानियां सुनाने लगे। वे बिना चप्पल दौड़ने, गुल्ली-डंडा, फुटबॉल, और बैडमिंटन खेलने की यादों में खो गए।
गांव में रोशनी, पर सुविधाओं की दरकार
नेमरा, जहां अब 150 संताल परिवारों के घर हैं, सौर ऊर्जा से जलने वाली स्ट्रीट लाइटों से रोशन है। रामगढ़ ज़िले के गोला प्रखंड मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर यह गांव अब पक्की सड़कों से जुड़ चुका है। हालांकि, गांव में अब भी आधारभूत सुविधाओं का अभाव है। सिर्फ नौवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाला एक स्कूल, डॉक्टरों की कमी वाला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, और कमजोर मोबाइल कनेक्टिविटी यहां की वास्तविकता को बयां करते हैं।
शहीद सोबरन सोरेन को श्रद्धांजलि
हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के साथ शहीद सोबरन सोरेन के 67वें शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा, “दादा की शहादत इसी पहाड़ की तराई में हुई थी। वह हमारे दिलों में आज भी जिंदा हैं।”
गांववालों को दिया शपथ ग्रहण का न्योता
नेमरा में श्रद्धांजलि सभा के दौरान हेमंत सोरेन ने गांव के लोगों का धन्यवाद किया और उन्हें शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का न्योता भी दिया। उन्होंने कहा, “सरकार का गठन हो रहा है। इस बार जब नेमरा आया हूं, तो फिलहाल परिसंपत्तियों का वितरण या योजनाओं का उद्घाटन नहीं, बल्कि आप सभी से संवाद के लिए आया हूं।”
संदेश: मिट्टी से जुड़े रहना ही असली पहचान
हेमंत सोरेन का यह दौरा न केवल उनके जीवन के शुरुआती संघर्षों की याद दिलाता है, बल्कि यह भी बताता है कि चाहे इंसान कितनी भी ऊंचाई पर पहुंच जाए, उसकी जड़ें हमेशा उसकी ताकत होती हैं।