अब क्या बदला?
इस बार कांग्रेस के पास फिर से 16 विधायक हैं, लेकिन पेंच यह है कि इंडिया ब्लॉक के कुल विधायकों की संख्या 56 है। कांग्रेस के फॉर्मूले से 14 मंत्रियों की गुंजाइश बनती है, लेकिन कानून कहता है कि झारखंड विधानसभा (81 सीटें) में मंत्रियों की संख्या 12 से अधिक नहीं हो सकती। इसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।
फिर क्यों कर रही है कांग्रेस ये डिमांड?
साफ है, बार्गेनिंग पावर कमजोर हुई है। 2019 में जेएमएम को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के 11 विधायकों की जरूरत थी। इस बार जेएमएम को केवल सात विधायकों का सहारा चाहिए। ऐसे में कांग्रेस का पुराना फॉर्मूला प्रैक्टिकल तो नहीं, लेकिन दांवपेंच का हिस्सा जरूर है।
लेफ्ट का खेल और आरजेडी की चुनौती
इस बार लेफ्ट भी गठबंधन का हिस्सा है। कोयलांचल और संथाल में लेफ्ट का जनाधार मजबूत है, और लोकसभा चुनाव से पहले हेमंत सोरेन ने उसे साथ लाने की पहल की थी। ऐसे में लेफ्ट को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होगा। आरजेडी भी एक मंत्री पद की उम्मीद लगाए बैठा है।
नंबर गेम और गठबंधन की सियासत
जेएमएम की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस को दरकिनार कर भी गठबंधन 40 के आंकड़े पर पहुंच रहा है, जो बहुमत से महज एक कम है। ऐसे में कांग्रेस का दबाव बनाना स्वाभाविक है, लेकिन इस बार उसकी बात कितनी सुनी जाएगी, यह कहना मुश्किल है।
क्या होगा आगे?
हेमंत सोरेन की सरकार के लिए मंत्रीमंडल का संतुलन साधना बड़ी चुनौती है। क्या कांग्रेस अपने फॉर्मूले पर अड़ी रहेगी? क्या लेफ्ट को मंत्री पद मिलेगा? और आरजेडी कहां खड़ा होगा? जवाब आने वाले दिनों में झारखंड की सियासत तय करेगी।