
परवेज़ आलम की खास रिपोर्ट ………
झारखंड की राजनीति में इन दिनों बीजेपी की खामोशी ने सत्ता पक्ष को हमलावर होने का पूरा मौका दे दिया है। विधानसभा चुनाव खत्म हुए चार महीने हो गए, लेकिन अब तक बीजेपी अपने विधायक दल के नेता का चयन नहीं कर पाई है। संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां अटकी हुई हैं, और सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि दो सप्ताह के भीतर नेता प्रतिपक्ष का चयन किया जाए।
मरांडी, सीपी सिंह और नीरा यादव!
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी इस दौड़ में सबसे आगे हैं। उनके साथ सीपी सिंह और डॉ. नीरा यादव के नामों पर भी गंभीरता से विचार हो रहा है। लेकिन बीजेपी की इस देरी ने सवाल खड़े कर दिए हैं। सत्ता पक्ष का कहना है कि चुनावी हार के बाद पार्टी नेतृत्व में गहरी निराशा है।
झामुमो और कांग्रेस के तीखे वार।
सत्तारूढ़ झामुमो ने इस मुद्दे पर भाजपा को जमकर घेरा है। झामुमो महासचिव विनोद पांडेय ने तंज कसते हुए कहा, “चुनावी हार के बाद भाजपा इतनी निराश हो चुकी है कि विधायक दल का नेता तक नहीं चुन पा रही। राज्य की जनता ने इन्हें नकार दिया है, और अब इनकी सियासत दिशाहीन हो गई है।”
कांग्रेस ने भी भाजपा पर संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान न करने का आरोप लगाया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा, “भाजपा को नफरत और झूठ फैलाने के अलावा कुछ नहीं आता। इनकी मंशा संविधान को कमजोर करने की है।”
मामला उल्टा पड़ गया।
गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा पहले संवैधानिक पदों पर नियुक्ति न होने को लेकर राज्य सरकार पर हमलावर रहती थी। लेकिन अब यही मुद्दा पार्टी के गले की फांस बन गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद विपक्ष को हमले का नया हथियार मिल गया है।
शीघ्र होगा निर्णय?
ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की निगरानी में जल्द ही विधायक दल के नेता का चयन करेगी। पर्यवेक्षक नियुक्त किए जाने की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश पार्टी पर दबाव बढ़ा रहा है, और फैसला जल्द लिए जाने की उम्मीद की जा रही है।
क्या मरांडी बन पाएंगे विधायक दल के नेता, या सीपी सिंह और डॉ. नीरा यादव बाज़ी मारेंगे?